आगे की बात

अपनी परसों की बात, आगे लिये चलता हूँ, कुछ प्रतिक्रियाएं मिलीं, सभी कृपापूर्ण, और उत्साह जनक... आभार 🙏 किसी ने विरोध लायक भी नहीं समझा, ऐसा क्यों मानें 😜 

एक दोस्त ने पूछा है, करें क्या ? इस पर कुछ देर बाद आते हैं ।

जिंदगी से जो कुछ सीखा है, एक शब्द में कहूँ तो 'अनाति' ही शुभ है, अन+अति, अति सर्वत्र वर्जयेत ! अति का भला न बोलना, अति की भली ना चूप । अति का भला ना बरसना, अति की भली न धूप।। जिनके अन्दर दया ही दया हो, वह अच्छे प्रशासक कम हो पाते हैं, और दया बिल्कुल ना हो, तो हो जाते हैं क्रूर तानाशाह।  आदमी भला ही भला हो, तो शोषण होने लगता है और अतिनिष्ठावान का उत्पीड़न। सास बहू के बीच भी तो कुछ ऐसा ही होता है।

कहते हैं, एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा था कि भगवान ने दुख बनाया ही क्यों, सुख ही सुख बना दिया होता तो उत्तर देने, गुरु उसे नाव पर, नदी के बीचो-बीच ले गया, और लगा एक ही चप्पू चलाने। नाव अपनी ही जगह गोल गोल घूमने लगी, और फिर उसने कहा, आगे बढ़ने के लिए, दूसरा चप्पू चलाना अनिवार्य है, वह भी विपरीत। ये तो नाव है, और तुम जिन्दगी चलाना चाहते हो ? दिन के बाद रात ना आये तो अगली तारीख ना आये, जीवन तो इतना लम्बा होता है। जीवन के लिए, अतियों के बीच संतुलन बनाए रखना ही शुभ भी है, और अनिवार्य भी।

पिछली पोस्ट, सबसे पहले अपने ब्लॉग पर डाली थी। बेटी ने देहली से फोन किया, एम्स में डाक्टर है, पापा, अभी सेफ लेवल डिसाइड कैसे हो सकते हैं ?

कितने हिसाबी-किताबी हो गये हैं हम, समझना होगा कि गणित से आगे असल समाज में, एक और एक, दो ही नहीं, सिफर भी होता है, एक भी और ग्यारह भी....😀

तो प्रिय मित्र दुबे जी, आपकी जिज्ञासा से उत्तर में, फिलहाल तो इतनी अपेक्षा कि अति, फिर भले वो सुरक्षा की ही क्यों ना हो, से बचा जाये, विपरीत को भी सम्मान दिया जाये और धैर्य के साथ परस्पर  सदभाव और सदभावना बनाये रखी जाय 🙏

बनत बनत बन जाई 😀
इति। शेष फिर कभी, नमस्कार  🙏 

 

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