आज, मैं 64 का हो गया।
वैसे कभी 14 का भी था। जन्म चांदी नहीं, पीतल की ही चम्मच के साथ हुआ था, मगर चम्मच थी साफ सुथरी, और मजबूत। अभाव कोई नहीं, मगर पैसे की कीमत पता रहती थी।
अपना खुद का, जीवन देखूँ तो, भगवान का आशीर्वाद, खुल कर बरसा है। यूँ अपार जैसा तो कुछ भी नहीं, मगर कोई अरमान अधूरा रहा हो, ऐसा भी नहीं। और आसानी से मिला हो, ऐसा भी नहीं। अच्छा ही है, इससे कीमत बनी रहती है। गलतियाँ न हुई हों, ऐसी आशा, ऐसा दावा मैं नहीं करता। मगर गलतियों के डर से, कोशिशों को रुकने, थमने मैंने कभी नहीं दिया। कभी सफलता मिली, तो कभी सीख़।
सीखा है कि जीवन में, हासिल करना ही सब कुछ नहीं, कभी कभार छोड़ने से भी मंगल होता है। और अशुभ हो फिर तो, शुभति शीघ्रम। यादें, आनंद साथ लातीं हों तो ही संजोना ठीक । जो आपके हाथ में था नहीं, और जैसा भी था, बीत ही गया तो बार-बार याद भी क्या ही करना ? बात केवल, दर्द को भुलाने की है।
माफ़ कीजिए और भूल जाइये, मगर सबक याद रखिये, कीमती होता है। सौन्दर्य नैसर्गिक ही सच, और इसमें योगदान, आपके आचरण, आपकी मनोवृत्ति का भी निश्चित होता है। और मन अच्छा और मजबूत ना रह पाये तो शारीरिक स्वास्थ्य तो भूल ही जायें। कार की रफ्तार ही नहीं, नियंत्रण और ठहराव भी कीमती होता है।
अभी हाल ही में, शहीद पथ पर जाते हुये, एक पुराने से ट्रक को चलते देखा। चढ़ाई विशेष नहीं, मगर दम फूल रहा था, उसका । घिसे टायर, माल ढोते-ढोते चक्कर बहुत लगाये होंगे, बदरंग सी बाॅडी, डगमगाती स्टीयरिंग और धीमे-धीमे लगते, आधे-अधूरे ब्रेक। साथ-साथ चलता, अधीर होता ट्रैफ़िक, हाॅर्न पर हाॅर्न, लगा जैसे ट्रक का योगदान, अब ना आवश्यक रहा, ना प्रासंगिक । हालत जानी पहचानी सी लगी ।
अब शहीद पथ से बचता हूँ, भीड़ में आपकी सहज रफ्तार, किसी के लिये, अनायास ही बाधा, और प्रतिकूल बन जाया करती है । कोई सुनसान सा, वीरान सा रास्ता, ट्रैफिक कम हो, संगीत पसंदीदा हो, यादें खुशनुमा हों और सफर, सहज सा, कोई मंजिल हो तो अच्छा, ना हो तो और भी अच्छा । मन इसी में रमता है, आज-कल । रात के बूढ़े दिये, जो ठहरे।
जिन जिन सुधिजनों ने अपना-अपना स्नेह और शुभकामनायें आज बरसाईं, सब का दिल से आभार ! आभार उनका भी, जो शुभेच्छु तो थे, पर बता ना सके, कारण जो भी रहा हो। आपको परमपिता का आशीर्वाद प्राप्त हो, आप सभी का मंगल हो।
बर्थ डे मना कैसे ? ये बतायेंगे फिर कभी !
2 comments:
भाई साहब नमस्कार, यह कहानी बिल्कुल अपनी जैसी लगी। सुंदर अभिव्यक्ति
भाई साहब नमस्कार, यह कहानी बिल्कुल अपनी जैसी लगी। सुंदर अभिव्यक्ति
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