कारण तो रहे ही होंगे, कि जिन्दगी का बोझ, उनकी क्षमता से आगे निकल गया। एक प्रतिभा का, एक अच्छाई का समय पूर्व दुखांत 🙏
असलियत तो या वो स्वयं जानते रहे होंगे या वे कारण, पर इतना मैं अवश्य जान रहा हूँ कि इस बोझ को उनके सामने बांट देने, और उनके परिवारियों, मित्रों सहचरों के सामने बांट लेने का अवसर हो गया होता, तो क्या पता, शायद अनहोनी ना होती।
कहा भी जाता है कि बांटने से दुख में कमी, और खुशियां कई गुना अपने आप होती हैं, कुछ करना नहीं होता। इन्सान, पृकृति से ही सामाजिक प्राणी, ऐसे ही नहीं है, पर पहले टी वी, और अब सोशल मीडिया.... अपने अपने दायरों में समेटने की कीमत चुका रहे हैं हम !
सुशान्त को श्रद्धांजलि के साथ-साथ, कल एक और सुशान्त को बचाने का भी सोचेंगे हम ?
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