अच्छा, जो भी आप हैं, लोग ध्यान भी नहीं देते, कितने ही ख़ास हों, हुआ करें, तलाशा जाता है, आप में, वही, जो आप में, नहीं हैं। बदलना, हमेशा, आसान नहीं होता, और फिर फ़ायदा भी कोनी, इसलिए कि जब बदल ही गये, आप, तो जो हो गये, सो हो गये, तलाशा जायेगा, आप में, वह, जो आप, अब नहीं रहे।
यानी कि, तलाश तो रुकती नहीं, आप बदला करिये, आपकी मर्जी। अब शादी हुई नहीं, कि आप को सिरे से बदलने में लग जाते हैं, लोग, आप बदल भी, जाते ही हैं, समझौतावादी हुए तो जल्दी, स्वाभिमानी हुए तो, देर-सबेर। और फिर, शिकवा, "तुम ना, पहले, जैसे नहीं रहे !"
आशय यह नहीं, कि बदलना गलत। बेहतरी के लिए बदलना, प्रगति की निशानी, लेकिन फैसला, आपका खुद का ही हो, और रास्ता, ईमानदार आत्मावलोकन का, और गुजरे कल के मुकाबिल, बेहतरी का इरादा। चार लोगों के, कहने भर से, बदला करना ? अन्तहीन सिलसिला। चले जीवन भर, कितना ? अढ़ाई कोस 🤗
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