असीमित का सीमांकन !


तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा ! 
(He gets it, who's prepared to give it up) 
यह वेदोक्ति है !

यह भी कि "सबसे अधिक, वही जानता है, जो जानता है कि, वो जानता, कुछ भी तो नहीं।" 

"हरि अनन्त, हरि कथा अनन्ता", सुना है ना ?

यह, इस अस्तित्व, और आस्था की, विराटता का, अनादर और अस्वीकार है कि हम इसे, मापने की, परिभाषित करने का प्रयास करें। भक्ति, वैसे भी भावना-प्रधान होती है, और भावना की, केवल अनुभूति ही हुआ करती है, अभिव्यक्ति नहीं। हो ही नहीं सकती, इसलिए कि शब्दों की, कितने ही सारे, कितने ही सुन्दर कहे जायें, होती है सीमा।

दृश्य देखे हैं, पृकृति के, कोई ओर, ना छोर, विस्तार असीमित। आपने कैमरे में कैद कर लिया, और जड़ दिया फ्रेम में। अब कितना ही बड़ा, कितना ही सुन्दर हो ये फ्रेम, मगर दृश्य की सीमा बन गया। अब दृश्य की यह छवि, फ्रेम से बड़ी, नहीं हो पाएगी। दृश्य प्राकृतिक नहीं रहा, छाया-प्रति बन कर रह गया।

भगवान के साथ भी, हम यही कर रहे हैं। उसे भजनों में, पूजा विधियों में, कृत्य-अकृत्य में समेटना, परिभाषित करना, उसे सीमाओं में बाँधना ही तो हुआ । उदार, सुसज्जित, कितना भी हो। एक तस्वीर हो, फिर तो फोटो-कॉपी भी बनेगी, फोटो शापिंग भी होगी, मगर कागज केवल, रह गये हाथ में, मूल तो जाने कहाँ ? और कब का छूट गया ?? 🤗

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