वो जो कहते हैं कि भगवान है, भी ? दिखता तो है ही, नहीं ! जान लें कि सिर्फ वही दिखता है, जब कोई और दिखना, बन्द हो जाता है । ये भी कि, वही देख भी लेता है, जब आप पक्का इन्तजाम कर लेते हो कि कोई और तो, नहीं देख रहा।
आपके, और आपके भगवान के बीच, किसी तीसरे को, लाना ही लाना, ना कोई मजबूरी, ना कतई जरूरी। ये चॉयस से ज्यादा, कुछ भी नहीं। भगवान के साथ, आपका यह सीधा संवाद, प्रायः आपके अन्तर्मन, या अन्तरात्मा के माध्यम से होता है।
तो अगली बार, जब आपका अन्तर्मन, किसी काम को करने को कहे, या तो करने से रोके, और आप फिर भी विपरीत करें, कि चार लोग क्या कहेंगे ? समझ लें कि अन्यथा सीधे सरल जीवन में गाँठ, आपने खुद लगा ली।अब पूरे मनोयोग से, ना तो आप कुछ भी कर पायेंगे, ना करे बिना, रह पायेंगे। और मज़े की बात, चार लोग, वहीं के वहीं, कुछ ना कुछ तो कहने पर तुले, चाहे कुछ भी करो 🤗
और, जो भी आप करें, ग़र स्वान्त: सुखाय से इतर, किसी से अनुमोदन लेकर, प्रशंसा पाने के लिये, या आलोचना से बचने के लिए किया तो, जाने-अनजाने, अपने संतोष, और कार्य समुचित संपन्न करने के आनन्द का नियंत्रण, किसी और के हाथ दे बैठे। अब, मर्ज़ी, मूड, मोटिव, सब फ्रंट सीट पर, आपका किया-धरा, सब पिछली सीट पर ? जी नहीं, डिक्की में। चांस की बात, चार लोग कृपालु हुए, तो बल्ले बल्ले, ईर्ष्यालु हुए तो ? बण्टाढार 😂
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