#46 मौन की भाषा


सोचता हूँ, आज मौन रह कर बात करूँ, निःशब्द ! 

देखें, समझना छोड़, सुन कौन-कौन पाता है। हर किसी के बस की बात नहीं, छटे तल जाना पड़ता है। और, फिर सब बरसने लगता है, बिना लाग-लपेट। अनछुआ, ना श्र॔गार, ना जुगाड़, ना दुराव-छिपाव। 

अभिव्यक्ति का सर्वोत्कृष्ट रूप। चीखें भले दो-चार मंजिल ऊपर तक पहुँचती हों, मौन बुदबुदाहट, सहज ही सात आसमान पार जाती है। 

भगवान से वार्तालाप, इसी भाषा में हो पाता है 🙏

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