#51 मर्द के दर्द !


"मर्द को...  दर्द नहीं होता !"

यह एलान, यकीनन खिलाफ पार्टी ने, किसी अक्कल के दुश्मन को, झाड़ पे चढ़ा के, और साजिशन दिलवाया होगा। अब जिस्म एक सा है तो दर्द भी तो, एक सा ही होगा, मगर तरकीब देखिये कि हँसते हँसते, कुर्बानी कब हो गई, खुद कुर्बान होने वाले को हवा नहीं होती।

गम्भीरता से देखें तो दर्द की अनुभूति, और अनुभूति की अभिव्यक्ति, दोनों अलग-अलग बातें हैं, और अगर फोकस खिसक जाये तो, हो जाता है। कौन राजा थे ? उन्नीसवीं सदी के आरम्भ में, कितना बड़ी चीर-फाड़, बिना किसी एनेस्थीसिया, गायत्री मंत्र जपते-जपते, करा गये। राणा सांगा ? कितने घाव, मगर जूझते रहे । 

अपने पहलवान ? इसी ओलंपिक, भले प्रतिद्वन्दी बांह से मांस नोंच ले जाये, लड़ना नहीं छोड़ते, और जीतकर दिखाते हैं। सीमा पर डटे, अपने जवान, गोली खाकर भी लक्ष्य प्राप्ति की कोशिश, कभी  छोड़ते नहीं हैं। नहीं साहब, दर्द तो बराबर से होता है, मगर कर्तव्य बोध, और लक्ष्य भेदन की जुनूनी, जुझारू, समर्पित कोशिश, दर्द  को बौना कर देती है।

चेहरे पर शिकन ना होना, दर्द ना होने का नहीं, समर्पण और बर्दाश्त का माद्दा, दर्द से बड़ा होने की खबर देता है। लोग चुप्पी से समझ लेते हैं कि मर्द को दर्द होता ही नहीं। इससे बड़ी नासमझी, और क्रूरता और क्या होगी। और यह बात केवल पुरुषों की ही नहीं, सभी की है, नारियों की भी, जमाने का सबसे बड़ा दर्द तो मां ही, अनन्त काल से धारण करती और सहती आई है। बात संवेदना, और त्याग के सम्मान की है।

कोई मोहतरमा, किसी अस्पताल में दाँत निकलवाने की फीस पर मोल-भाव कर रही थीं, फीस करने के लिए। उन्होंने एनेस्थीसिया भी बेहिचक हटवा दिया तो, डाक्टर को भी झुकना ही पड़ा। चेयर पर बैठने को कहा तो बोलीं, दाँत मेरा नहीं, पति का निकलना है, बाहर ही बैठे हैं, अभी बुलाती हूँ। 

मजाक से आगे, बात संवेदना की है। दर्द की अनुभूति की है, उससे खुद ना भी गुजरना हो, तो भी । यह बात समझने की है कि दर्द, मर्द को भी होता है, और आह पर पहरे, हर तरफ से, कौन से जमाने से। स्वार्थी निष्कर्ष, दर्द होता ही नहीं। बात ही खत्म। 

जानिये जनाब, ऐसा बिल्कुल नहीं है। आप जानते हैं ना, कि मर्द जल्दी खर्च हो रहे हैं, दिल के दौरे, मर्दों को ज्यादा पड़ते हैं। दर्द पहचानिए भी, अनुभव और कारण अलग-अलग हो सकते हैं, होंगे ही, मर्द जो है। किसी किसी दर्द को जानने को, खास कोशिश करनी पड़ सकती है, चुप्पी पढ़ना भी सीखना पड़ेगा।

और मर्द महोदय, आप ! अरे, दर्द के रास्ते से थोड़ा सा दायें-बायें हो जायें, डायरेक्ट हिट ना हों, या ना हो पायें तो जरा मरा रो गा लें, जज़्बात बाहर आ जायें तो हमदर्दी मिले, ना मिले, राहत जरूर मिलती है, ऐसा साइंसदां कहते हैं, मगर पहले मान लें कि दर्द आपको भी होता है, स्वाभाविक है, कुदरती है, शरम की बात कोनी  !

वैसे, कमाल के खालिस हिम्मती लोग, आधे हिम्मती और आधे समझदार और खालिस समझदार, सारे अपनी अपनी जगह सही हैं, और ये मेरी अपनी बात है। 

आपकी ? आप जानें, आप की अन्तरात्मा की, वो जाने, आज पूछना जरूर 👍

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