#49 शेयर के भाव, जिन्दगी के बाजार !



जिन्दगी के बाजार में, दो सिद्धांतों पर मुझे तो कोई संशय नहीं, दोनों ही महत्वपूर्ण और आधारभूत। एक, कोई चीज मुफ्त नहीं मिलती, और जबरन हथिया भी ली जाय तो ना शुभ होती है, ना हितकर । और दो, अगर गांठ में हो पूंजी भरपूर,  तो कुछ भी तो नहीं दूर !

कीमत की बात करें, तो उपलब्धि की कीमत, यानी उसके लिए किये गये प्रयास। जितना परिश्रम, जितना धैर्य, जितना समर्पण, फल में मिठास और पौष्टिकता, उतना ही समझना। जो मुफ्त हासिल हो, जुगत से, या विरासत में, अपने-आप, फिर वो खालिस सोने की ही क्यों ना हो, उपयोगी और सुखदायिनी, हो नहीं सकती ।

यह बात, बच्चों को बचपन से ही सिखाने जैसी है, होता यही है, होना चाहिए भी। कुदरत के इस कायदे की अनदेखी  घातक भी हो सकती है। मां-बाप, बड़े-बुजूर्गों के लाड़-प्यार की कीमत तो, शिशु भी चुकाते हैं, अपनी भोली, बाल सुलभ, मनमोहक लीलाओं से। थोड़े बड़े हुये तो जीवन मूल्यों को सीखने के लिये, अपने समर्पित, ईमानदार, निष्ठा और परिश्रम से परिपूर्ण, अनवरत प्रयासों सै। 

और जब खुद, बच्चे वाले होने लायक हो गये, तो कृतज्ञ भाव की निरंतर अभिव्यक्ति, और पालकों की  इच्छाओं-अपेक्षाओं के यथा सम्भव, आदर अनुपालन के ईमानदार प्रयासों के से । जिस बुजुर्ग ने ये बेशकीमती और असरदार नेमत, लापरवाही में, या नासमझी में, नाहक लुटा दी। अपने लाड़ले को, कमाना और फिर खाना, सिखाया ही नहीं, तो जैसे जिन्दगी भर, उसे इन्तजार के लिए मजबूर कर दिया कि कोई तरस खाये, और उसकी झोली कुछ तो डाल दे, या तो मौका मिले छीन-झपट का। 

पुरुषार्थ से तो जान पहचान ही नहीं हुई, फिर और करे भी तो क्या, और कैसे ? अपने ही हाथों, बर्बाद कर दिया, बेशक ! राहत की बात कि, कि वापस लौटने की, और हुई गलती ठीक करने की, कोशिश कभी समय बाह्य नहीं होती। यह सवेरा, जागते ही होता है, तुरन्त ! एक बात और, आदर सम्मान की कीमत, अपने मर्यादित और उदाहरणीय आचरण से, बड़े बुजुर्गों द्वारा चुकाया जाना भी उतना ही उचित है, और आवश्यक भी 😀

उदाहरण तो और भी हैं, और रोचक, मगर और कभी। बात खरीदारी की करें तो, पूंजी पर ध्यान जाता है, गांठ पूरी होनी ही चाहिये । इसकी मुद्रा को व्यापक नजरिये से देखें तो, आपका आत्मविश्वास, आपके संकल्प की मजबूती, आपका परिश्रम, अनथक और निरन्तर प्रयास, सब कुछ शामिल होता है इसमें, और धैर्य भी।

कीमत चुका चुकने के बाद भी सफल होते ना दिखें तो, उसका एक ही मतलब, पानी गर्म तो हो रहा है, मगर सौ डिग्री पहुँचने, और पकने तक, टिके रहने में, अभी समय बाकी है। समय को कुछ समय और दें, घटना घटना तो इतना ही निश्चित है, जितना कि सुबह-सुबह सूरज का निकलना।

कहते हैं, कोशिश अपनी जगह, मिलता उतना ही है जितना किस्मत में होता है, और मैं कहता हूँ  कि उद्यम असीम और जीवट लवालब हो तो खुद किस्मत ही बदल जाये, कौन जाने, क्या पता ? 👍

1 comment:

Nusra said...

Baat saufi sadi sahi hai sur Qabile ghaur bhi

THE QUEUE....