#54 मोती रास्ते के, और मौके के... दस्तूर जो है

 



बोझ उठाये हुये फिरती है हमारा अब तक, 

ए जमीं मां, तेरी ये उमर आराम की थी।


फिर दयारे हिंद को, आबाद करने के लिये, 

झूम कर उठो, वतन आजाद करने के लिये


दिल से निकलेगी, ना मर कर भी, वतन की उल्फत, 

मेरी मिट्टी से भी, खुशबू ए वफा आयेगी।


वतन की खाक से मर कर भी हम को अंस बाकी है, 

मजा दामन ए मदार का है, इस मिट्टी के दामन में ।


वतन की ख़ाक, जरा एड़ियॉं रगड़ने दे, 

मुझे यकीन है, पानी यहीं से निकलेगा।


खुदा ए काश नाजिश, जीते जी वो वक्त भी आये, कि जब,

हिन्दोस्तान कहलायेगा, हिन्दोस्तां ए आजादी।


लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है, 

उछल रहा है, जमाने मैं नाम ए आजादी ।


खून शहीदां ए वतन का, रंग लाकर ही रहा, 

आज ये जन्नत निंशा, हिन्दुस्तां आजाद है।


ए वतन जब भी, सर ए दश्त कोई फूल खिला, 

देख कर तेरे शहीदों की निशानी रोया।


हम भी तेरे बेटे हैं, जरा देख हमें भी, 

ए खाक ए वतन, तुझसे शिकायत, नहीं करते।


ए ख़ाक ए वतन, अब तो वफाओं का सिला दे दे, 

मैं टूटी सांसों की फसीलों पे खड़ा हूं।

स्वतन्त्रता दिवस पूर्व संध्या, 14 अगस्त 2021 !







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