#47 समस्या और समाधान, मगर कैसा ?




एक गांव की कहानी है, दो कुंए थे, एक समर्थों के पास, अहाते के अन्दर, केवल विशेष के लिये, और दूसरा, थोड़ा कम समर्थों के पास, बाहर, खुले में, जो सभी को सुलभ और उपलब्ध। 

हुआ ऐसा कि, सार्वजनिक कुंए का पानी दूषित हो गया, ऐसा कि लोग पीते तो पागल हो जाते। लोग भागे भागे समर्थों के पास गये, इस विनती के साथ, कि उन्हें भी साफ पानी लेने दिया जाय। समर्थों के पास, पता नहीं पानी कम पड़ा, या दिल में जगह, बहुमत को साफ पानी मिल नहीं पाया। पानी जैसी चीज, सबको दूषित ही पीना पड़ा और सब पागल भी हो गये।

समस्या समर्थों के सामने भी, साथ ही, आ खड़ी हुई। अहाते से बाहर, उठना बैठना, लेन-देन, काम-काज, रोज मर्रा का इन्तजाम, सब तो बाहर वालों के सहारे ही चलता आया था, मगर अब तो सब पागल हो चुके थे, सुनना समझना दूभर । जीवन लगभग असंभव हो गया।

भागे-भागे, गाँव के सयाने के पास गये। सुनकर पहले तो बहुत हंसा, और फिर उपाय बताया, "अब सोचने विचारने का समय जाता रहा। कोई विकल्प नहीं, एक ही रास्ता। दौड़ते हुये जाना बाहर के कुंए, और फौरन वही पानी, तुम भी पी लेना। फिर समस्या न रहेगी।

प्रज्ञा जाती है तो समस्या साथ ले जाती है, एक रास्ता ये भी ?


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THE QUEUE....