क्या होना चाहिए, इस पर वाद-विवाद भी हो सकते हैं, मतभेद भी। अधिक महत्वपूर्ण बात यह कि, आपकी क्षमतायें क्या हैं ? सामर्थ्य कितनी है ? कितना स्वयं, और कितना सहज, सुलभ, बाहरी मदद से। निर्णय, तब ही तनावमुक्त रह सकते हैं, और सफल निष्पादित भी।
क्षमताओं से बड़ा, और बिना सोचे-विचारे आयोजन, उपहास, अपमान, और पछतावा भी ला सकता है। अवसर तो, तात्कालिक, मगर भावनात्मक ठेस, लम्बे समय तक चुभने वाली, बात।
और चलते चलते,
कहने वाले तो कहने की वजह ढूँढ ही लेते हैं, हर सावधानी, हर कवच को, दरकिनार कर। लोग क्या कहेंगे, निर्णय का आधार, यह न ही बने, तो ही ठीक !
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