तुरत-फुरत, किए हुए काम में, कमियाँ निकालने लग जाते हैं, अब, अगर कमी निकालनी ही हो तो, कुछ ना कुछ तो, झूठा सच्चा ही सही, मिल ही जायेगा। इसके आगे, "भई, काम खराब करने से तो, अच्छा है, जब तक आता ना हो, दूर रहो। हमने काम ना किया हो, कम से कम, नुकसान तो नहीं किया"
यही विकल्प, दूसरे के पास भी है, वह भी, इनके किये काम में, जब भी करें, कमियाँ निकाल सकता है। दोनों पक्ष, एक दूसरे की कमियाँ, तलाश करते रहेंगे, एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिशों में, लगे रहेंगे, हतोत्साहित करते रहेंगे। इस खींच-तान में, कम से कम, काम तो कोई, होने से रहा।
सकारात्मक रहो तो, खराब से खराब काम में भी, अच्छाई, निश्चित ही मिलेगी। आप, प्रोत्साहित भी कर सकते हैं, अगली बार, पिछला अनुभव होगा तो, कमियाँ घटेंगी, और गुणवत्ता बढ़ेगी, इसमें श़क कोनी। यही, प्रगतिशीलता का मूल मंत्र है।
आप, मेरे घर का, दिया बुझायें, मैं, आपके घर का, तो अंधेरा, और घना हो जायेगा, कटेगा नहीं। कटेगा तभी, जब मैं, आपका दिया, बुझाने की जगह, अपना दिया जलाऊँ, धीमा हो, मद्धम हो, तो भी, अंधेरा, कुछ तो कम होगा ही। सम्भव है, आप भी प्रेरित हों, सद्बुद्धि आये तो, दिया जलायें, घर का कोना कोना रोशन होते, देर ना लगेगी।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ! यही सार है 🤗
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