किं-कर्तव्य-विमूढ़ !


वाह-वाही, या प्रभुताई तलाशते, ऐसे लोग, आपको बड़ी आसानी सा दिख जायेंगे कि साहब, मरते मर जायेंगे, कितना ही दुख, तकलीफ, नुकसान हो, गलत काम को हाथ भी नहीं लगायेंगे। अंग्रेजी से एमए पास, मगर एक वाक्य, ता-उम्र ना बोल पाने वाले लोग, इसी कैटेगरी में मानें।

लाख बेहतर हैं, वह लोग, जो गलत सही की परवाह बगैर, यथापेक्षित काम, ससमय करते हैं। जानते हैं कि सही-गलत का अन्ततः निर्धारण तो समय करता है, परिणाम के माध्यम से, तब तक, किसी का सही, किसी का गलत, यह व्यक्ति-परक, परिस्थिति-परक और तत्कालीन भी हुआ करता है। दोषी, आप गलत काम कर डालने के लिए ही नहीं, अपेक्षित कार्य, समय पर ना कर पाने के लिये भी, अकृत-कार्य, माने जाते हैं।

आशय, यह नहीं, कि प्रकटतः गलत कार्य भी आप, लोभ में, लालच में, राग में, या द्वेष में, या भयातुर होकर, करने से पहले विचार ना करें। अन्तर्मन, अगर आप के साथ है, तो अपेक्षित काम, बिना समय गंवाए, करना ही उचित। ये भी कि, अन्ततः तो-

"हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश, विधि हाथ !"

और विधि के आगे, हमारी, या आपकी, खास चलती नहीं। काम समय पर होना ही सार्थक, आगे भगवान की इच्छा 🙏

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