बैठना गंगा-तीरे, और स्नान करते लोगों को, ध्यान से देखना। प्रायः सभी प्रफुल्लित दिखेंगे, सौभाग्यशाली, पुण्यार्थी !
इन्हीं के बीच, कोई कोई दिखेगा, असहज, असंतुलित, छटपटाता, हाथ-पैर फैंकता। स्पष्टतः, सामन्जस्य बैठ नहीं रहा है, उसका। अब गंगा का वेग प्रचण्ड है, या तो उसकी क्षमतायें चुक रही हैं, अपर्याप्त हो रही हैं।
अधिक देर तक, ऐसा चल नहीं पाता, छटपटाहट कम होती जाती है, थम जाती है, फिर कोई शोर भी नहीं। शायद तैरना आ गया, संतुलन वापस पा लिया, उसने। यही एकमात्र निहितार्थ नहीं है, मगर। ये भी हो सकता है, जीवन संघर्ष के परे हुआ, वह असहाय, निरीह।
आपकी भूमिका, ससमय, यथा सामर्थ्य, सहायता की भी हो सकती थी, रील बनाने की भी, इस तरह कहानी सुनाने की भी, जो भी, मगर अब तो, चिड़िया उड़ गई, खेत चुगा, ना चुगा, क्या ही फर्क ?
अब, अपनी अन्तरात्मा को, जवाब देते रहिये, ता-उम्र! 🤗
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