वो, परम्परावादी लोग थे, और अपनी बेटी के लिए, सुयोग्य वर तलाश रहे थे। एक जगह बात चली तो वहाँ, गुण मिलान के लिये जन्म पत्री माँग ली गई। जन्म पत्री देते समय, उन्होंने लगे हाथ, वर की भी जन्म पत्री ले ली और अपने पंडित जी से मिलान करा लिया। 36 गुण, साहब, 36 के 36 गुण, समान मिले। दुर्लभ संयोग, 'रधुनन्दन, फूले ना समाय' ! लगा कि अब कोई कैसे ही मना करेगा, रिश्ता पक्का हुआ ही समझो।
मगर हैरानी की बात, रिश्ता पक्का होना तो दूर, लड़के वालों ने दरवाजा भी नहीं खोला। अन्दर से ही कहलवा दिया कि रिश्ता नहीं करना है, इसलिए अब इधर आने का कष्ट ना करें। घोर अपमान के साथ-साथ, अचरज की बात, 36 गुण मिलने के बाद भी ? तो सफाई आई, "हमारा लड़का तो लफंगा है, ये हमें मालूम है, तो क्या लड़की भी, लफंगी ही ले आयें, जानते बूझते ?"
इतना तो मजाक है, और मुझे लगता है भ्रांति है बहुत बड़ी कि ग़र लड़का लड़की एक विचार के होंगे तो कल्याण होगा। अरे, बण्टाढार होगा साहब, अन्यथा सगोत्रीय सम्बन्धों को, वरीयता ना दी जाती। जैसे गड्ढा बनायें, पौधे के लिए, एक समान विचार का आशय, कुदाल का, ठीक एक जगह चलना, गड्ढा गहरा होता जायेगा, मगर विस्तार, चौड़ाई कहाँ से आयेगी। कोई पौधा रोप ना सकेंगे।
दोनों कुदालें, साथ-साथ चलें, मगर एक ही जगह नहीं, आस-पास, सामंजस्य के साथ, तो ही काम बनेगा। समझदार लोग, समान नहीं, कम्पैटिबिल की तलाश करते हैं, जैसे कि नट और बोल्ट। चूड़ियाँ मिलाई जाती हैं। कामयाब हो जायें, तो जोड़ बने, ऐसा कि हिलाए ना हिले। परम मूढ़ता में, बोल्ट बोल्ट, या फिर नट और नट की, शादी करा दी, तो जीते जी, उम्र भर के नरक का इंतजाम कर गये, जाने अनजाने।
और ये कि, बोल्ट और नट की, संयुक्त उपयोगिता है, दोनों बिल्कुल अलग-अलग हैं मगर, इसीलिये तुलना और प्रतिस्पर्धा की बात ही निपट मूर्खता, और इसी बात पर जिन्दगियाँ तबाह हो रही हैं। बेहतर साबित करने को, बीच चौराहे, एक दूसरे के, कपड़े फाड़े जा रहे हैं, बेख़बर, कि दोनों ही निर्वस्त्र हो रहे हैं, शर्म, मगर, किसी को नहीं आती !
अरे, कोई तो सोचो ! 👐
No comments:
Post a Comment