त्रिमूर्ति की अवधारणा, अर्वाचीन है, मगर शाश्वत है, या कि हम सभी के अन्दर, चिर-स्थापित रहती है।
त्रिमूर्ति, बोलें तो, तीन स्वरूप। एक, जो आप, स्वयं को समझते हैं, दो, जो और लोग, आपको समझते हैं, और तीन, जो दर-असल, आप हैं।
एक, जो शादी से पहले, प्रेमी-प्रेमिका दोनों, एक दूसरे में देखते हैं, दो, जो शादी, थोड़ी पुरानी हो जाने के बाद एक दूसरे में, देखने लगते हैं, तीसरे जो, वस्तुतः होते हैं, ईगो से बाहर आ पायें तो, देख भी सकते है, और तो और, सुख-शान्ति से, साथ-साथ, रह भी सकते हैं।
आभार 🙏, आलोक खन्ना जी !
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