रीति-रिवाज-परम्परायें !

अगर आप से बूझें, इलैक्ट्रानिक गैजट, कौन सा लेना चाहिए, आप कहेंगे, लेटेस्ट, जितना नया, उतने फीचर, उतना पॉवर, उतना फास्ट। तो जितना नया अफोर्ड कर पाओ, उतना बढ़िया। 

मगर नया, हमेशा अच्छा ही हो, जरूरी कोनी। पुराने की भी, अपनी कीमत, हुआ करती है। पुराने चावल, पुरानी शराब, आन-बान-शान। विरासत का अनिवार्य अंग होती हैं, परम्परायें। इनहैरिटेड वैल्यूज़ !

पुरानी इमारतों के दरवाजे, अक्सर छोटे मिलते हैं। सर झुका के आना होता है, ध्यान रहे, सर झुकाने से कोई, छोटा भी नहीं होता।

"वो जिसने, सर अपना, दर पे झुकाया होगा,
कद उसका, यकीनन् बड़ा, दर से रहा होगा !"

अगर, ईगो या किसी और वजह, कर ना सको, फूटेगा सर भी, टूटेगा दरवाजा भी, और भरोसा इमारत का भी क्या ? विनम्रता, विशिष्ट सद्गुण माना गया है। इन्हीं के लिए, कहा जाता है,

"अन्दाज़ा उसके कद का लगाना, आसान न था,
था तो आसमान, मगर, झुक के चला करता था।



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