Collaboration !
अभी हाल ही में, आमिर ख़ान की "सितारे ज़मीन पर", देखने का संयोग हुआ। एक डायलॉग, जो दिल के बहुत नजदीक पहुँचा, पर आपसे चर्चा करना चाहूँगा :
किं-कर्तव्य-विमूढ़ !
दुर्दिन !
समझो, नदिया है जीवन; नाव है, भरण-पोषण की, जो भी व्यवस्था; इसमें भरते रहने वाला पानी है, आये दिन की चुनौतियाँ; माँझी है, परिवार का/की मुखिया; और साथ में, उसका सहारा, सहयोगी, सहभागी और प्रायः उसी पर आश्रित, हमसफ़र।
फ़रारी बनाम ट्रैक्टर !
अगरचे, जोतने खेत ही हों, या तो, मन, खेत-खलिहान में ही, लगता हो, तो, खरीदना, ट्रैक्टर ही चाहिए, फ़रारी नहीं ☝️
बात भोजन की : जुटाना, बनाना, खाना-खिलाना !
इस प्रसंग के निहितार्थ, बहुत मूल्यवान हैं कि घर में खाद्यान्न की व्यवस्था करने वाला अधिक महत्वपूर्ण है, या उस खाद्यान्न को, सुरुचिपूर्ण खाद्यपदार्थ में, बदलने वाला ?
गंगा-स्नान !
परिवार की बात, बात की बात !
तमसो मा ज्योतिर्गमय !
Reaching out !
रायते की दावत !
किं-कर्तव्य-विमूढ़ !
वाह-वाही, या प्रभुताई तलाशते, ऐसे लोग, आपको बड़ी आसानी सा दिख जायेंगे कि साहब, मरते मर जायेंगे, कितना ही दुख, तकलीफ, नुकसान हो, गलत काम को हाथ भी नहीं लगायेंगे। अंग्रेजी से एमए पास, मगर एक वाक्य, ता-उम्र ना बोल पाने वाले लोग, इसी कैटेगरी में मानें।
बोझिल जीवन !
सवाल-जवाब
एक घिसा पिटा मज़ाक है, एक पढ़े-लिखे, और एक अनपढ़ में, बहस होती थी। पढ़ा-लिखा, जाहिर है, भारी पड़ता था, और अनपढ़ के पास, कोई फौरी उपाय नहीं था। कई बार की लानत मलानत के बाद, उसे भी, उपाय, सूझ ही गया।
उसने पढ़े लिखे को, सार्वजनिक मंच पर शर्त लगाकर बहस की चुनौती दे डाली, कि एक दूसरे से सवाल पूछें, और जो उत्तर ना दे पाये, विपक्षी को तत्काल, अनुतोष का भुगतान करे। एक शर्त और भी, कि पढ़े-लिखे के पास संसाधन अधिक हैं तो पारिता के लिए, विफलता की स्थिति में, अनपढ़ का अनुतोष अधिक हो। जैसे अनपढ़ के पास, जवाब ना हो तो 1,000 ₹, अगर पढ़ा-लिखा निरुत्तर हो, मगर, तो अनुतोष, 1,00,000 ₹। अति आत्मविश्वास में, पढ़ा-लिखा, राज़ी भी हो गया।
यही, भारी भूल साबित हुई कि भैंस का वज़न, अकल से नाप लिया। अनपढ़ ने, पहले सवाल की बारी भी, बड़ी आसानी से, पा ली, और पूछा,"वो चिड़िया, जिस का सिर एक, मगर आँखें, चार ?" पढ़े-लिखे का तो दिमाग़ घूम गया। ना कभी देखा, ना सुना, थोड़ी-बहुत मगज़मारी के बाद, 1,00,000 ₹, चुपचाप, अनपढ़ के हवाले कर दिए।
अब बारी, पढ़े लिखे की थी, तो उसने अपने ज्ञानवर्धन को वही सवाल, अनपढ़ से पूछ लिया। अनपढ़ ने बिना कोई समय लगाये, 1,000 ₹, चुपचाप, पढ़े लिखे को थमा दिए।
आजकल, प्रेरणा यही है, या कुछ और, यही तरकीब बहुत लोकप्रिय भी है, कारगर भी। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर, आप कोई भी सवाल पूछ सकते है, जवाब हो ही, आपको इससे क्या ? यह दायित्व तो पढ़े लिखों को, कर्ता-धर्ताओं का, कि वो कहीं से भी लायें, जवाब देना तो, पड़ेगा ही। और ये काम आसान नहीं, खासकर, जवाब पूछने वाले को ही, संतुष्ट करने वाला भी, होने का चाही।
इसलिए कि सोये हुए को जगा भी लें, आँख ही बन्द कर रखी हो, जिसने, किसी ना किसी स्वार्थ में, उपाय कोई बचता नहीं। तो ये, प्रायः बे-मतलब के, सवाल-जवाब, चलते ही रहने वाले हैं, जब तक सवाल पूछने वाले को, खुद जवाब, और यथार्थ-परक, पता होने की पूर्व-शर्त, अनिवार्य ना कर दी जाये। तब तक, जन-धन का तो, अपव्यय हो ही रहा है, हुआ करे !
लोक-लाज, और आयोजन !
क्या होना चाहिए, इस पर वाद-विवाद भी हो सकते हैं, मतभेद भी। अधिक महत्वपूर्ण बात यह कि, आपकी क्षमतायें क्या हैं ? सामर्थ्य कितनी है ? कितना स्वयं, और कितना सहज, सुलभ, बाहरी मदद से। निर्णय, तब ही तनावमुक्त रह सकते हैं, और सफल निष्पादित भी।
क्षमताओं से बड़ा, और बिना सोचे-विचारे आयोजन, उपहास, अपमान, और पछतावा भी ला सकता है। अवसर तो, तात्कालिक, मगर भावनात्मक ठेस, लम्बे समय तक चुभने वाली, बात।
और चलते चलते,
कहने वाले तो कहने की वजह ढूँढ ही लेते हैं, हर सावधानी, हर कवच को, दरकिनार कर। लोग क्या कहेंगे, निर्णय का आधार, यह न ही बने, तो ही ठीक !
प्रगतिशील परम्पराएंं !
दिन-रात, और दिन-रात !
बात कर्म, और उसके फल की !
यह श्रीमद् भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का, एक प्रसिद्ध श्लोक है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को कर्मयोग का, उपदेश देते बताए गए हैं।
इसका अर्थ है, "तुम्हारा अधिकार, केवल कर्म करने तक ही सीमित है, उसके फल पर नहीं। इसीलिए, कर्म का प्रयोजन, फल की इच्छा नहीं होना चाहिए, और न ही, फल की आशा, कर्म करने में, तुम्हारी आसक्ति का आधार"
इस श्लोक का गूढ़ार्थ यह, कि मनुष्य को अपने कर्तव्यों का वहन, निष्काम भाव से करना चाहिए, अर्थात् बिना किसी स्वार्थ, या फल की अपेक्षा के, क्यों कि जब हम कर्म करते हैं, तो उसका परिणाम, हमारे नियंत्रण में, हो नहीं सकता, वह अनेकानेक कारकों पर निर्भर करता है, जो हमारे अधीन नहीं। अस्तु, हमें केवल अपने कर्म पर ही ध्यान देना चाहिए, फल पर नहीं।
कोई परीक्षार्थी, स्वयं, अपना मूल्यांकन, कैसे करेगा ? इसलिए कि कृत कर्म के, स्वयं पर, प्रभाव का अनुमान तो सम्भवतः वह कर भी ले, समग्र और व्यापक प्रभाव, उसकी क्षमता से, परे की बात, और सम्यक दृष्टि में तो, समूची सृष्टि ही, प्रासंगिक हुआ करती है। तो कृत-कर्म का व्यक्तिगत मूल्यांकन, और कर्मफल पर अधिकार, युक्तियुक्त नहीं।
कर्म-फल, अनिवार्य होता है, मगर। इसे, मूल सिद्धांत ही, समझें। एक, कर्म-फल, कर्ता का अधिकार नहीं, कर्ता के अधीन नहीं, और दो, कर्म-फल, जो भी, जभी भी, नियत हो, इससे भागने का उपाय, कोई होता नहीं, ये अनिवार्य है, भोगना ही पड़ता है। ये भी, कि कृत के साथ-साथ, अकृत, यानी, करने योग्य, परन्तु उपेक्षित, कर्म भी विचारे जाते हैं। ये, हमेशा याद रखने, जैसी बात है।
संतोष की, सुख की बात, यह कि आकलन न्यायपूर्ण, पूर्वाग्रह रहित, और सकारात्मक होता है। भोलेपन में, निराशय, अज्ञानता, या विवशता, यानी परिस्थितियों का भी, संज्ञान लिया जाता है, किये गये प्रयासों का भी, भले उनकी परिणति, परिणामों में, ना हो पाई हो।निर्णय पृकृति का, स्वयं परमपिता का, सटीक, और सही समय। ना देर, ना अन्धेर, आप जो चाहे, सोचें।
गम्भीर बात, सतर्कता की बात, ये कि दण्डाधिकारी, कठोर है, दृढ़ निश्चयी है, उससे छुपा कुछ भी नहीं, सब कुछ जानता है, वह, उसे भी, जिसे छुपाने के, लाख उपाय करते हो, आप। कोई चालाकियाँ, कोई षडयंत्र काम नहीं आते, सब बल, पद-बल, प्रतिष्ठा-बल, बाहु-बल, धन-बल बौने हो जाते हैं, और कर्म-फल वैयक्तिक होता है, भले लाभ के अंशाधिकारी, कितने ही, क्यों ना रहे हों।
कर्म खुद किया हो, या करवाया हो, निमित्त बने हों, कर ना पाये हों, योजना ही बनाई हो, मनस: वाचा कर्मणा, लिप्त तो हो ही गये। बैंक खाते की तरह, मोक्ष तक, जन्म जन्मांतर, डेबिट क्रैडिट होता ही रहता है, सदाचरण से क्रैडिट स्कोर, आपके ही हाथ। लोन बहुत बार, आमन्त्रण के साथ, सुलभ होता है तो कभी बैंक के चक्कर पे चक्कर लगाकर भी नहीं। सौभाग्य हो, या दुर्भाग्य, अप्रत्याशित हो तो, यही आधार, यही हेतुक 🤗
THE QUEUE....
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अभी हाल ही में, आमिर ख़ान की "सितारे ज़मीन पर", देखने का संयोग हुआ। एक डायलॉग, जो दिल के बहुत नजदीक पहुँचा, पर आपसे चर्चा करना चाह...
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इस प्रसंग के निहितार्थ, बहुत मूल्यवान हैं कि घर में खाद्यान्न की व्यवस्था करने वाला अधिक महत्वपूर्ण है, या उस खाद्यान्न को, सुरुचिपूर्ण खाद्...