हलाहल !


तू बच के, भागेगा भी, कहाँ, नामाकूल !

ये तमाशबीन, ये पुलिस, ये कानून, सब, उसी के तो हैं,

तेरे हिस्से, जेल, जलालत, पंखे से फंदा, और अब ड्रम,

और तो और,

ईंट-ईंट बनाया, तेरा अपना ही घर भी, तेरा नहीं, अभागे !

मगर तू तो मर्द है, और मर्द को दर्द कहाँ होता है

काश, ना होता, हिसाब तो ना देना पड़ता,

कोई माँगता भी नीं !

जो, जी ही, ना जा सके, ज़िन्दगी, वही, गुजारनी होती है !

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THE QUEUE....