प्राय:,
लोग, येन-केन-प्रकारेण, औरों को झुकाने के जतन में लगे रहते हैं कि, वो बड़े दिख सकें।
काश !
समझें कि, झुकने से कोई छोटा नहीं होता, बल्कि और लचीला हो जाता है, और ऊँचाई पकड़ने में सक्षम, कि कौआ, पेड़ ऊपर जा बैठे, रहता कौआ ही है, बाज़ नहीं ना हो जाता। बाज़ जमीन पर भी, बाज़ ही रहता है।
और ये कि, बड़ा दिखना, और बड़ा होना, अलग-अलग बात। अकड़ा हुआ इंसान, सूखता भी है, और एक ना एक दिन, टूटता भी है, इसलिए कि झुकना तो, उसके ऐजेंडे पर, होता है ही नहीं।
मगर बड़प्पन, इन दोनों से अच्छा !
चलते-चलते - कौआ अगर ठान ले, और प्रयास करता ही रहे तो, शकल-सूरत ना सही, सीरत में बाज जैसा, एक दिन, हो भी सकता है। और बाज़, अगर मुगालते में रहे, लापरवाह हो जाये, तो दिखता भले रहे, बाज़ बना रहता नहीं !
व्यापक निहितार्थ।
और, कन्धों पर बैठ कर, ख़ुद को, बड़ा समझने वाले ? 😂
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