मुझे, अक्सर यही लगता है कि, हर महान व्यक्तित्व, घोर संघर्ष से होकर, गुजरता ही है, अर्हता भी यही, पात्रता भी यही, करीब-करीब,अनिवार्य। ये संघर्ष ही, वह भट्टी है, जिसमें तपकर, साधारण सोना, कुन्दन बनता है।
संघर्ष ही जुझारू बनाता है, ताकतवर भी, धैर्यवान भी, सहनशील भी, दृढ़ संकल्पित भी। तो हैरानी कोनी कि सफलतम व्यक्तित्व, प्रायः साधारण पृष्ठभूमि से ही आते, अधिक मिलेंगे।
हवा प्रतिकूल हो, मगर संकल्प अडिग, ताकत भरपूर, तो जहाज, पलक झपकते, ऊँचे आसमान जा पहुँचता है, निखर जाता है। कहीं भी डांवाडोल हुआ, बिखरते भी, देर नहीं लगती।
जो संपन्न पृष्ठभूमि से आते हैं, कठोर संघर्ष से वंचित रह जाते हैं, तो उतना धैर्य, संकल्प और क्षमता, आये कहाँ से ? सहनशील नहीं होते, सफर, अक्सर, अधूरा ही छूटता है, इनका।
विरासत के संसाधन, एक तरह का, हैण्डीकैप समझें। ऐसे लोग, आगे दिखते तो हैं, होते नहीं दर-असल। दौड़ शुरू होने भर की देर, दूध का दूध, और पानी का पानी, हो ही जाता है।
एक उपाय है, वैसे ! आप संपन्न सही, संसाधनों को, अपने बच्चों को, सहज सुलभ, मत कराइये। कमाना, खुद तो कभी सीख ही ना पायेंगे, वर्ना, आश्रित रहेंगे, आजन्म, सारा फोकस, सुविधायें, येन-केन-प्रकारेण, हासिल करने पर।
शिकार, खुद मार के खाने का, लुत्फ ही कुछ और, ये शेरों का काम है, और दूसरे के मारे, शिकार पर, जो नजर रखे ? किसी समय, राजकुमार भी, शिक्षा-दीक्षा के लिए, गुरुकुल भेजे जाते थे, एक साधारण छात्र के समान रहकर, समस्त वास्तविक कठिनाइयों के बीच, पूर्णतः स्वावलम्बी, बिना किसी विशेष सुविधा !
शायद इसीलिए !!
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