इस कायनात का, शायद, सबसे मजबूत रिश्ता होता है, सबसे खूबसूरत, सबसे नजदीकी, सबसे पवित्र, और सबसे कीमती, बल्कि अमूल्य कहना ही, ज्यादा सही...
इसलिए कि, आप माँ, बाप, सन्तान, पति, पत्नी, प्रेमी, प्रेमिका, सहोदर, सहपाठी, सहकर्मी, पड़ोसी, सम्बन्धी, पड़ोसी, हमसफर, कुछ भी हो सकते हैं, मगर दोस्त भी हो पायें, कोई जरूरी नहीं। और, अगर दोस्त हो जायें, हों तो, कुछ और भी हों, या ना हों, महत्व नहीं।
दोस्त, यानी दो का अस्त होना, दो जिस्म, एक जान, जैसे दूध में, मिश्री मिल गई, किसी को मिठास मिली, तो किसी को विस्तार। दोस्ती में, लाभ-हानि नहीं होती, इसलिये कि, यह रिश्ता दिल का होता है, दिमाग का दखल हुआ, समझो, दही होना शुरू, दही यानी बेजान, रस्म अदायगी, फकत।
दोस्ती, एक बार हो जाये तो, जान रहने तक, जिन्दा रहती है, ना रह पाये तो समझ लेना, दोस्ती थी ही नहीं, वहम हो गया था। जान देकर भी, जिन्दा रखा जाता है, इसे। ये अधिकार भी है, उत्तरदायित्व भी, मौज-मस्ती भी, चिन्ता भी, सम्पत्ति भी, देनदारी भी।
बराबरी का होता है, ये रिश्ता। दोस्त साथ-साथ चलते हैं, हाथ में हाथ, आगे पीछे, सपोर्ट बन कर, आगे आगे पुश करते हुए, जैसे दो पैर, ठीक किसी खेल की तरह। इस खेल में महत्व, हार-जीत का नहीं, खेलते जाने का ही होता है। शिकवा-शिकायत कैसी, सब समझ जाते हैं, बिन कुछ कहे, अपने-आप।सच्ची दोस्ती मिल गई, समझो, दुनियाँ ही मिल गई, जीवन खुशनुमा, और आसान हो गया।
कोई और दवा, कोई और तरकीब, इतनी कारगर नहीं।
दोस्ती का मौका मिले, चूकना नहीं, हो जाये तो, खोना नहीं। सच्चे दोस्त, किस्मत से मिलते हैं, जैसे भगवान का प्रसाद। फिल्म बाॅबी की, वो मशहूर लाइन याद आ रही है,
"आइ एम बाॅबी ! मुझसे दोस्ती करोगे ?"
हर दिल में, जैसे घंटियाँ सी बजने लगती थीं, उन दिनों, कसम से, चाहे बाॅबी का, दूर दूर तक, कोई अता पता भी ना हो। मगर, ध्यान हमेशा रखने जैसा, दोस्ती होना, एक बात, दोस्त होना, अलग बात, एकदम अलग।
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