राजनीति, यानी राज करने की नीति। इसे नीति कहना भी बहुत उपयुक्त नहीं, इसलिए कि, उसमें तो नियम भी होते हैं, सिद्धांत भी। इसे तरकीब ही कहें, तो ठीक, या फिर जुगाड़, येन-केन-प्रकारेण !
एक से एक, प्रतिभावान व्यक्तित्व हैं, अपने यहाँ, मगर जो दिखाई देता है वह है जोड़, प्रजेन्टेशन का अधिक, और कन्टेन्ट का, कम, जितना भी बन पड़े। ना हो, तो भी कोई नहीं, जनता को, मतदाताओं को, भरमाना आना चाहिए, काफी है।
जाहिर है, खुद को अधिक स्वीकार्य, सिद्ध करना होता है। नोट करें, सिद्ध करना मूल है, होना नहीं, खुद को उपयुक्त, और विपक्षी को अनुपयुक्त, या तो अधिक अनुपयुक्त। एक दूसरे के कपड़े, बीच चौराहे फाड़े जा रहे हैं, इसकी ना चिन्ता, ना शर्म, कि दोनों ही नंगे हो रहे हैं।
और फोकस, खुद को ढँकने पर कम, सामने वाले को, नंगा करने पर, अधिक है। नेता होना, गौरव नहीं, गाली का पर्याय बनता जा रहा है, और यह देश का दुर्भाग्य है। इसी रास्ते चलना ही, मर्जी नहीं तो, मजबूरी बनी हुई है, यही बिक रहा है।
आम जनता, इस प्रपंच में, केवल भुक्तभोगी ही नहीं, उत्तरदायी भी है, अपने विवेक का, यथोचित प्रयोग, ना करने के लिए, अधिकारों के लिए तो जागरूक होने, परन्तु कर्तव्यों को, ताक पर रख देने के लिए। नौवीं फेल, किसी और को, चौथी पास बताकर, अपनी सब कमियाँ धो डालता है, उसका लक्ष्य है, बनना आपका भाग्य विधाता, और साधन हैं, आप खुद।
ऐसे कि आपसे पक्का वादा होता है कि घर घर से डीएम बनायेगा, बिना हाथ-पैर हिलाये, घर बैठे फ्री खाना-पीना, इलाज, कर्जे माफ। गेंहूँ खरीदा जायेगा, सौ रुपये किलो, रोटी मिलेगी अठन्नी की तीन, मगर देगा कौन ? शायद कोई भी नहीं, वोट की तरकीब भर होती है, अक्सर तो। और अगर मिलती भी है, तो खर्चे की सारी भरपाई, आप ही से, घुमा फिरा कर। और कोई उपाय तो है, ही नहीं।
आपके सपने जगा दिए, पात्रता बौनी है, आप खुद भी जानते हैं, मगर लालच, भारी पड़ता है। यह जानते हुए भी, कि वादे तो, होते ही आ रहे हैं, सपने दिखाए ही जाते आ रहे हैं, पूरे किसके होते हैं ? ये भी बताने की बात है, हैसियत का, रातों-रात काया-कल्प होता, किसे नजर नहीं आता ? यही दीक्षान्त समारोहों में, मुख्य अतिथि होंगे, शिक्षा, सदाचार पर भाषण देंगे, और वहीं के मेधावी-तम, इन्हीं के सचिव बन कर, इनके लिए, खैनी बनाते नज़र आयेंगे।
एक तो ये कि नेतृत्व, कहीं और से नहीं आता, हमारे और आप के बीच से ही, निकलता है, इसकी सारी क्षमतायें, और संसाधन, हमीं से हासिल होती हैं, भले राजी-राजी, नहीं तो, जबरन। ध्यान रखिए, तेल, तिल से ही निकलता है, केवल, निकलवाई, अलग।
पात्रता, और कामना के, बीच का अन्तर, सरकार पूरा करती है, या ऐसा वादा करती है, मगर वह भी प्राप्त, आप ही से करती है। सपने देखने में, बुराई कोनी, मगर उन्हें पूरा करने का दायित्व भी, आपका ही हो, सरकार का नहीं। फ्री में खाना, कहीं पर भी नहीं मिला करता, भुगतान सीधा सीधा हो, या घुमा फिरा कर, सबसे कम सीधा सीधा, ।
सर्व-निर्विवाद, निष्कलंक, लोग मिलते ही कहाँ है ? सबसे ठीक, या तो सबसे कम खराब जो लगे, चुनिए। लालच में मत आइये, अपने पास से कोई नहीं देता। जितना बड़ा लालच, उतना ही अधिक शोषण, पीछे पीछे आता ही है।
इस समय, फायदा किसका, नुकसान किसका, यह भी बेमानी, क्योंकि नम्बर सबका आना है, बारी बारी से, आज इसकी, कल उसकी, रोटी घूमती रहती है। बनती आपका पेट काट कर है, खाता कोई और है, टुकड़े कभी-कभार, आपकी तरफ फेंके, बात अलग !
आपका दीर्घकालीन हित, मुझसे पूछें तो, ईमानदार, अनथक कोशिश, संयम और धैर्य के साथ, कर्मण्ये वाधिकारस्ते, मा फलेषु... का अनुसरण। हो रहा है, फलये वाधिकारस्ते, मा कर्मेषु कदाचन् ... और चाही का, राम राज, राम-राम 🙏
हे राम 👐
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