अंक परिवार प्रणाली का, सबसे बड़ा भाई है, 9, और इसमें बड़प्पन भी, कूट-कूट कर भरा है। छोटा, कोई भी अंक, इसके पीछे, छुप सकता है, आसरा भी पा सकता है, सान्निध्य में आये तो, गुण-धर्म भी। विश्वास ना हो तो, किसी भी अंक को, 9 से गुणा करिये, गुणनफल के अंको का योग, 9, ही आयेगा। कर के देखिये 🤗
9 होना, मुश्किल भी नहीं। मैं राजी हूँ, उन सबसे, जो कहते हैं, 3 में 6, मिला भर दो, 9 हो जाओगे, मगर उनसे नहीं, जो मानते हैं, कि यही एक मात्र रास्ता है। इसलिए कि 7 और 2 भी, 9 ही होते हैं, 4 और 5 भी, 3 को 3 से गुणा करो, तो भी, या 81 का वर्गमूल लो, तो भी।
10 से 1, निकाल दो, तो भी, अनगिनत सम्भावनायें होती हैं, और गलत कोई भी नहीं, निराधार विवाद। एकमात्र हल तो, अंकगणित का सार, और आधार, दोनों ही ले डूबता है । 9 को बड़ा, और उदार बनना है तो, विशाल हृदय होना, आवश्यक भी है, अनिवार्य भी।
चमन में, हर तरह के, रंग-औ-बू से, बात बनती है,
हमीं हम हैं, तो क्या हम हैं ? तुम्हीं तुम हो, तो क्या तुम हो !
मगर, दो और दो, तो चार ही होते हैं, नौ छोड़िए, पाँच भी नहीं, ना हो सकते हैं, ना होना चाहिए, ना होने देना चाहिए। पात्रता के लिए, उन्हें पाँच और, चाहिए ही चाहिए, जीरो का भले, ढेर लगा लो। धींगा-मुश्ती से बात बनती नहीं। बगिया के खर-पतवार ही मानें इन्हें, जितनी जल्दी मुक्त हों, पात्र पौधों की सेहत के लिए, उतना ही अच्छा 😃
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