पात्रता, सहानुभूति की !


उसके पैर से, बहुत ही ज्यादा खून बह रहा था, दो लोग सहारा देकर, उसे डाक्टर के पास लाए थे, दर्द से तड़प रहा था।

डाक्टर ने नुकसान, जांचा-परखा और पूछा, कैसे हुआ, तो पता चला कि उसके जूते से, एक कील बाहर आने लगी है, सब कारस्तानी, उसी की है।

डाक्टर ने फिर पूछा, कि कील निकाल दी, कि नहीं ? तो जवाब मिला, जूता किसी की निशानी भी है, और कीमती भी, तो छेड़खानी, कर नहीं सकते।

डाक्टर ने फर्स्ट एड बाक्स बन्द किया, बोला, मरहम पट्टी का सार नहीं, फिर तो कुछ, पहले कील निकाल बाहर करो, तब आना।

और, तीमारदारों से बोला,

"अगर मूढ़ता, किसी का चुनाव है तो विषम हालात में, किसी से मदद की, सहानुभूति की इच्छा, अपेक्षा, रखे भले, ये उसका अधिकार नहीं, ना ही किसी और का, कोई सामाजिक कर्तव्य। ये केवल आकस्मिक आपदा में ही प्रासंगिक होते हैं"

यह एक बार फिर से, दोहराने लायक बात है।

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