"अच्छा, कोई हीरा, कब कीमती होता है ?"
"4 C, चार सी कहा जाता है, 4 Criterias, पहला कट, यानी तराशा कितनी खूबसूरती से गया है, दूसरा कलर, यानी रंग कितना चमकदार है, तीसरा क्लैरिटी, बोलें तो साफ कितना है, पारदर्शिता, और अन्ततः कैरट, यानी वज़न, आकार, बड़ा कितना है। ठीक ?"
"अरे बुड़बक, पाँचवा, नहीं नहीं, पहला सी, कम्पीटेन्स, जौहरी पारखी कितना है। लोग जी-जान लगा परफार्म करते करते पस्त पड़ जाते हैं, मालूम चले, जज साहब को तो पैदायशी मोतियाबिन्द हो रखा है, ना दिखाई दे, ना सुनाई।
और, छठे सी, तुम खुद। काहे ? समझ तो गये ही होगे, पब्लिकली, और क्या ही बोलूँ !
जौहरी में ही खोट हो तो, ता-उम्र बाँट-बट्टे बने, किसी कोने में ही पड़े रह जाओगे, ग़र असल कोहिनूर भी हो, हुआ करो !" 😂
राज बब्बर की कोई, लोकप्रिय फिल्म थी, मैं नाम याद नहीं कर पा रहा, इंजीनियर की भूमिका थी, विलेन की बन्द पड़ी मशीन को, हथौड़े की एक सटीक चोट से, वापस चालू करने के बाद, मेहनताने के पाँच सौ रुपये माँगे तो खलनायक, आपे से बाहर। पाँच सौ रुपये, बड़ी रकम होती थी, "पाँच सौ रुपये, एक हथौड़ा मारने के ? दिमाग खराब है ??"
जवाब मिला, "हथौड़ा मारने के तो, पाँच रुपये, चार सौ पिचानवे, इस बात के कि कहाँ, और कैसे मारना है ?"
बात सोलह आने सही है। सालों की साधना होती है, ये सीखने के लिए, कि हथौड़ा कहाँ, और कैसे मारना है। हथौड़ा तो, कोई भी मार देगा, मगर काम बने, तब ना ! और ये साधना, और प्रवीणता, अदृश्य होती है, जिसे उपलब्ध हुई हो, वही कीमत समझता है।
एक काम ठीक-ठाक करना हो तो, काम करने में, भले ही थोड़ा समय लगे, योजना बनाने में, कितना समय, और एकाग्र चित्त होकर, खाना-पीना तक भूल जाता है, आदमी। शरीर वैसा ही दिखे, मगर दिमाग़ व्यस्त है, घूमने गये हैं, तब भी, आधी रात, समय सोने का, विश्राम का है, तब भी। शरीर तो काम करता, दिख भी जाता है, और लोग कहें, करते ही क्या हैं, हाथ पैर भी हिला दें, तो बड़ी बात 😂
फिर वही, जौहरी वाली बात ! जैसे कोई जटिल रिसर्च पेपर, मूल्यांकन के लिए, अपने प्राइमरी के मास्साब के हाथ, लग गया हो 😀,
और बात केवल इंजीनियर्स की ही हो, एसा भी नहीं। प्रायः हर बुद्धिजीवी की, दुर्दशा की, बेकद्री की, यही कहानी ! दाल होना, किस मुर्गी को दर्द, और अपमान, नहीं देता, और अक्सर मुर्गियाँ, अपने ही घर में, दाल भी शुमार हो पायें, तो बहुत।
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