ईद-उल-अज़हा के मुकद्दस मौके पर, अपने सभी मुस्लिम दोस्तों को दिली मुबारकबाद !
कहा जाता है कि आज के दिन, अपने किसी अजीज़ की कुर्बानी का रिवाज है। बाहर जो भी करें, या ना भी करें, मेरी आरजू है कि तलाश, इस बार अपने अन्दर से ही शुरू करें। कुर्बानी लायक कितने ही जनावर, आपको वहाँ छुपे-छुपे ऐश करते मिलेंगे। मिसाल के लिये, नफरत, बेइमानी, खुदगर्जी, जहालत, काहिली... वगैरह वगैरह।
आप कहेंगे, अजीज भी तो होना चाहिए ! तो साहब, मानें ना मानें, अच्छाई के मुकाबिल, बुराई हमेशा से ही, आसानी से, और अन्दर तक, घर बनाती आई है, और अजीज भी होती ही है, किसी की जाहिर, किसी की राज़ 😀। तो इस बार अन्दर से....
यह काम, गैर मुस्लिम भी कर सकते हैं। अन्धेरे से उजाले की तरफ जाना हो तो मजहबी महूरत क्या देखना।
और हाँ, यहाँ संग-साथ के चक्कर में ना पड़ जाना। इस रास्ते जाना ही काफी। अकेले हो तो भी, काफिला बनते देर लगती है ? 👍
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