चलते फिरते:
गये किसी रविवार को, एक डॉक्टर साहब हैं, उनका जन्मदिन हुआ। मित्र भी हैं, सम्बन्ध भी मानते हैं और असल से कम नहीं निभाते, भले आधी रात आजमा लो।
फोन किया, तो उठा नहीं, मैसेज छोड़ दिया। आम तौर पर ऐसे में, उनका वापसी फोन जरूर आता है, यथाशीघ्र। क्षमा भी मांगते हैं, कारण भी बताते हैं और अपेक्षित भी करते हैं।
पहली बार ऐसा हुआ, कि ऐसा नहीं हुआ, और कारण, हमारे बधाई संदेश पर उनसे आई हुई, कोई ऐसी वैसी क्लिप। ऐसी वैसी, मतलब ऐसी वैसी, हालांकि चन्द सैकन्ड्स की, और फिर सन्नाटा, घटाटोप !
ये तो थी पृष्ठभूमि, नीचे साझा कर रहा हूँ, वार्तालाप, माइनस क्लिप। ठीक है ?
पहला दिन -
"डा साहब, नमस्कार 🙏
आपको फोन कर रहे थे, भूल गये थे कि छुट्टी का दिन है, सुबह देरी से हो सकती है।
कुछ खास नहीं, ध्यान गया कि आपका जन्मदिन है, तो बधाई देने का मन हो आया।
कुबूल हो, बधाई भी, आशीर्वाद भी, और शुभकामनायें भी 👍"
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क्लिप का आ टपकना, और फिर सन्नाटा
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अगले दिन -
"आखिर जन्मदिन था आपका, डाक्टर साहब, साल में एक बार तो आता है, तो हक पूरा-पूरा बनता है आपका, जैसा मन हो, वैसे मनायें, जो चाहें, प्रसाद में बांटें 😜
कुछ शौक, सार्वजनिक नहीं होते, और सच यही है कि आपके सान्निध्य में हर बात सहज नहीं होती, सम्बन्ध ही ऐसा है। 😀
मुझे मालूम है, यह चूक ही हुई है । वैसे, कोई इतनी बड़ी बात भी नहीं। अपराध बोध से, कृपया मुक्त हो जायें। मैं, खुद कर रहा हूँ। सोचता था जन्मदिन पर, उपहार क्या दें, यही सही 👍"
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