05-09-2019
आज शिक्षक दिवस है, पता नहीं
बधाई
की बात है या अफसोस की, साल में केवल एक दिन... गुरु तो हर दिन, हर पल आपके साथ रहना ही चाहिए, सही रास्ता चुनने में आपकी मदद करे, फिजीकली ना सही, सोच में तो कोई बाधा नहीं ! असल में, कन्सेप्ट ही बदल गया है, आज शायद यही प्रासंगिक भी है।आजकल पुरानी बातें खूब याद आती हैं । पापा के साथ-साथ किसी एक स्कूल से दो क्लास पास नहीं की। हाईस्कूल में आये, सरस्वती विद्या मंदिर इण्टर कालेज, आगरा, श्री रमेश चन्द्र मित्तल थे क्लास और इंगलिश टीचर । सौभाग्य से मेधावी विद्यार्थी की पहचान बहुत सघन और शीघ्रता से मिली। मित्तल साहब का आकलन, और सब तो असाधारण, मगर इंगलिश मे में बेहतरी की अनेक सम्भावनाएँ । इसके सामान्य तात्पर्य, ट्यूशन, को उन्होंने विनम्रता मगर दृढ़ता से ठुकरा दिया। मुझे तो वेतन ही अपनी सभी योग्यताओं को, अपने शिष्यों को बांट देने का मिलता है, हां, मेरी भी वित्तीय आवश्यकताऐं हैं, ट्यूशन भी करता हूँ, या करना पड़ता है मगर अपने ही विद्यालय के बच्चों का कदापि नहीं। इस तर्क पर, कि सब्जैक्ट टीचर के होते मेरी ताकत और कमजोरियाँ, उनसे अच्छा कौन जानेंगे, वह सहमत हुये। पूरे साल, विशेष प्रयास मगर बिना किसी अनुतोष ! कुछ समय बाद वह आगरा छोड़कर, सम्भवतः कुरुक्षेत्र चले गये, मगर एक तरह से अभी भी मेरे साथ हैं ।
तीन चार साल बाद ही, मेरे छोटे भाई के सन्दर्भ में, परिस्थितियों ने स्वयं को दोहराया। शिक्षक का नाम लिया जाना भी उपयुक्त नहीं, वही परिस्थितियां, परन्तु हुआ ठीक विपरीत। स्वतः ट्यूशन की सलाह, इस बार स्वयं शिक्षक महोदय द्वारा भिजवाई गई और ट्यूशन भी हुआ, केवल ट्यूशन !
अब तो लगभग 50 वर्ष, पुल के नीचे कितना ही पानी बह चुका, बिना विस्तार में गये, जोखिम बहुत है इसमें
, अब ना वो शिक्षक रहे, ना वो शिष्य ... ना वो समाज, ना वो मूल्य । जो हो रहा है, लगता है वही होता रहे तो भी बहुत । मेरी ओर से अनेक बधाइयाँ और शुभकामनाएं ! हां, मित्तल साहब को, वे जहाँ भी हों, श्रद्धा नमन 


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