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 20-06-2021

भलमनसाहत तो यही है कि, आप कायनात को, उससे ज्यादा देकर जायें जितना आपको मिला है, उससे !
आज मेरा दिन है, पिता का दिन, कम से कम बच्चों के लिये तो है ही। बच्चे जिनमें मेरा जीव है, या फिर विचार हैं, या तो फिर दोनों हैं।
माता पिता, भगवान की बनाई वो एफ डी होते हैं, जो आपसे पहले दुनियाँ में आती है । एफ डी, साधन-सुविधाओं की, संस्कारों की, सुरक्षा की और सलीके की। अगर ठीक-ठीक चले तो इसकी ब्याज ही पार उतार देती है, वर्ना तो ख्वाहिशों का कोई ठिकाना तो होता नहीं।
माता पिता, जैसे साइकल के दो पहिये। माता, जैसे आगे वाला पहिया, साफ सुथरा, हमेशा आंखों के सामने, दिशा देता। कीचड़-गड्ढे से बच बचाकर निकल पाने की सुविधा होती है, इसके पास। साइकल पर सवार बच्चे भी, आम तौर पर, इसी पहिये को जानते पहचानते हैं।
पिता, यानी पीछे वाला पहिया। शायद ही कभी नजर जाती हो उस तरफ। उसके लिये आकर्षक दिखने से ज्यादा जरूरी, स्थिरता और मजबूती होती है, हवा बराबर रखनी पड़ती है। रफ्तार बनी रहे, ये इसी के जिम्मे। अपनी-अपनी भूमिकायें। पहिये साथ-साथ घूमते हैं तो जिन्दगी आगे चलती है। साइकिलें आजकल वैसे, फ्रन्ट व्हील ड्रिवन भी खूब दिखतीं हैं, बोथ व्हील ड्रिवन भी, और मोनो व्हील भी 😀
बच्चे पिता बनने लायक हो गये, समझो, खुद एफ डी हो गये। पिछली एफ डी की ना जरूरत, ना संगति, ज्यादा से ज्यादा एक धरोहर। हम यहीं हैं आज। पिता कैसे रहे, इस बहस का हिस्सा हम नहीं। सभी तो, अच्छा करना चाहते हैं। हुआ कितना ? बच्चे जानें, या फिर समाज, या फिर समय।
जो भी किया, कोई उपकार नहीं। कर्तव्य, सबसे पहले स्वयं के प्रति। एक प्रयास उऋण होने का, अपने पूर्वजों से, समाज से, कायनात से। किसी प्रतिफल की अपेक्षा नहीं। बच्चे सुखी हैं, सकुशल हैं और समाज को योगदान में सक्षम, इतना बहुत !
🙏
Suman Singh, Dhirendra Singh and 23 others
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