#44 आज की बात !
#43 Born with a silver spoon ? So what !
Those born with a silver spoon, are usually found, iron deficit.
Please note that it's not the nutritional value of food you take alone, but, and more importantly, what've you done to feel hungry, to the point of starving, before you pounce on, and what you intend doing later, to digest it, to suckle the last drops of vigor. This is so rare, surprisingly and especially, in affluent families of these days.
In good old days, even royal princes, were subjected to a hard, demanding life, away from the homely luxuries, under tutelage of a ruthless master, indifferent to his exclusive status. So crucially significant, and so unfortunate that we've done away with this essential part of an appropriate upbringing, in the name of pseudo love, and affection. Disastrous !
No wonder, the kids today are used to, rather dependent on luxurious comforts, not earned, but provided by their ignorant parents. They obviously, never realise what does it take to reach there, they were never made to, and so they don't value it either. Once lost, they've no clue how to get it back, or how to live without them. What a pity !
Protections are precious, and not all have the fortune of having them, primarily from parents. But beyond a reasonable limit, it's sheer poison, rendering your own, lovely child, into a helpless, spineless creature, vulnerable from every side, and corner. Being captain of a ship, which never faced a storm, is a matter of utter misfortune, because he'll never learn anything from the sail, and will collapse, even with the mildest of tremor.
High time, we reconsider how we bring our prodigies up. No harm is feeding with a silver spoon, but ensure, enough Iron is also reaching up 👍.
#42 क्या स्याह, क्या सफेद - सारा खेल सहूलियतों का है साहब !
कोई अनोखी बात नहीं, आये दिन, सुनने को मिल ही जाता है, खुद हम भी कहते हैं, अमुक अच्छा है, अमुक ... राम राम ! क्या सच में ही परमपिता ने दो प्रजातियाँ बनाई हैं, और ख़ास आपके लिए ? आपको दुःख देने की योजना, उसने बनाई होगी, लगता तो नहीं ! कोई पर पीड़क थोड़े ही है वो !
जितना मैंने देखा है, हर अस्तित्व के दो पहलू होते ही होते हैं, अनिवार्यतः । एक उजला, और एक अंधेरा, मगर दोनों आप देख तभी पायेंगे, जब आपकी अपनी दृष्टि व्यापक होगी। प्रयोजन या संदर्भ विशेष से डाली गई नजर, प्रायः संकुचित होती है, एक तरफ ही देख पाती है। फिर संयोग की बात है, अनुकूल हुई तो अच्छा, ना हुई तो ...
तभी, एक ही आदमी, कभी भला लगता है कभी दुष्ट। थानेदार, जब चोर पर सख्ती करता है तो बहुधा उसके इन्सान होने पर ही शक होने लगता है, मगर अगर चोरी आपके ही घर में हुई हो तो ? ट्रेन में रिजर्वेशन, वैसे अब उतना संवेदनशील विषय नहीं रहा, मगर कल्पना कीजिए, आप रिजर्वेशन करा के सफर कर रहे हैं, और टीटी, लालच में, या अन्यथा, किसी को डिब्बे में आने दे तो ? और कभी, इस तरह डिब्बे में जगह पाने की इच्छा, आपकी अपनी ही हुई तो ?
तो महत्व वस्तु, और उसके दो पहलुओं का नहीं है, आपकी नजर और जरूरत का है, अनुकूलता इसी से निर्धारित होती है। प्रतिकूल परिस्थतियों में विचलित होना, स्वाभाविक है, पर अगर हर पहलू से देखने लगेंगे, तो नाराजगी, हताशा थोड़ी कम हो जायेगी। और, यह परस्पर है। ध्यान रहे, कोई ना कोई, आपको भी, हर समय देख रहा होता है।
वो आदमी चालाक होता है, युक्तियुक्त भी कह सकते हैं, जो हमेशा उजला पक्ष ही आपकी तरफ बनाये रखेगा, सुनिश्चित भी करेगा कि अनुकूल ही हो। ध्यान से देख लेना कि उसने उजले पक्ष की तस्वीर ना चिपका रखी हो, राजनीतिक लोग अक्सर ऐसा ही करते हैं। भोले-भाले मासूम से इन्सान के पास ना ये सुविधा होती है, ना जरूरत। विश्वसनीयता होती है और वो होती है अमूल्य !
बहुत बार बात कुदरत की होती है, किसी के भी नियंत्रण से परे, और तब अपने आपको, स्वयं ही सज्ज होना होता है, अनुकूल बनना होता है ....
जैसी बहै ब्यारि, पीठ तैसी कर लीजै !
फिर कोई समस्या नहीं रहती, हर तरफ से एक सा ही दिखता है। जैसे, पौधे की जड़ को पानी मिल गया 🙏
पुनश्चः अगर आपको यहॉं आना, सच मैं भाता है तो याद दिला दूं कि, आपके पास सब्सक्रिप्शन का उपाय भी उपलब्ध है। अगर चुनेंगे तो फल पकते ही आपको खबर हो जायेगी, वो भी अपने आप 👍
Institute you passed out of, ... & You !
A great institute, will cast you into a wonderful mindset, will clean, polish and arrange your thought channels, but even it can not meddle with the ingredients. It doesn't have that power 😃
Only you can do that, with your perseverance, with the support of the environment, family, office and beyond and the grace of Almighty.... 👆
Remember that, ... Always ! and also that,
"कर्मण्ये वाधिकारस्ते .... 👍
जीवन की कहानी - तेरी मेरी कहानी
एक प्यार का नगमा है, मौजौं की रवानी है,
जिन्दगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी... (साभार 🙏)
जी हॉं, बेशक !
इसे लिखें भी, खुद ही, अपने ही हाथों से,
और हॉं, बीच-बीच में चैक भी करते रहें, जहॉं ठीक लगे, जरूरी लगे, सुधारते भी चलें, फिनिश़ अच्छी मिलेगी !
👍
About Blog : How to reach the field of action, explore, contribute and plan ahead, a revisit !
नियत दिन, जब दर्शकों में उसके अपने जन्म दाता भी शामिल थे, उसने हवाई जहाज उड़ाने में, अपने सर्वश्रेष्ठ कौशल का प्रदर्शन किया। क्या रफ्तार, क्या फुर्ती, क्या ऊंचाई, क्या कलाबाजियां, क्या नियंत्रण... सारा मैदान तालियों के शोर में डूब गया। उसे सर्वोच्च सम्मान उपलब्ध हुआ। अवसर मिलते ही, वह माता पिता के पास आया, पैर छुये और पूछा कि उन्हें कैसा लगा ? पिता तो चुप रहे, मगर माता से ना रहा गया,
"खानदान कौ नाम कद्दौ बेटा, इत्ती तारी, सब ताईं, इत्ती वाह वाह, नजन्न लगै, बेटा, छाती चौड़ी है गई। ऐसे ई खूब तरक्की करौ 🤚, दिन दूनी, रात चौगुनी !
वैसे एक बात बोलें बेटा, उड़ाय तौ लेत हो, पर अबई लहकत है, डगमगात बहुत है, धीरे धीरे हाथ रमा हुइ जैये तो फिर सीधे चलन लगौगे ! का है कि डर लगत है, गिरि गिराय परौ तो चोट लगैगी, सो लगैगी, नुकसान अलग । सो नैंक हाथ पांय बचाय कै"
बात हंसी-मजाक की हो सकती है, मगर देखें तो एक मां की ममता, गौरव और बेटे का हित चिन्तन अपने चरम पर है। अलग बात है कि उन्हें एक परिवेश विशेष का अनुभव, और वैसी समझ उपलब्ध नहीं हो पाई, कुछ संयोग, कुछ हालात। उनका अपना दोष, ना बराबर, और जो कुछ रहा भी हो तो अपनेपन के चमकते सूरज की चकाचौंध में, टिकता कहाँ है।
एक जहाज, मैं भी उड़ा रहा हूँ आजकल। दर्शक, कुछ कौतूहल, कुछ कृपापूर्वक प्रोत्साहित करने खुद आये है, प्रायः आते ही हैं। बहुत लोग ऐसे हैं कि जिन्हैं खबर ही नहीं हो पाई है अभी तक, और यही प्रयास, ऐजेन्डे पर सबसे ऊपर है। पाती हर तरफ, और दूर दूर तक जाये, ऐसा अनुरोध आपसे तो हो ही रहा है, स्वयं मैंने भी इधर व्हाट्स एप पर, ब्राडकास्ट की मदद ली थी।
प्रतिफल तो मिला, उम्मीद से ज्यादा मिला, मगर देखने में यह भी आया कि बहुतों के पास, इच्छा तो भरपूर है, मगर बोध की शक्ति नहीं है। वैसा अनुभव का अवसर, कभी हो ही नहीं पाया उन्हें। कुछ भाषा भी कभी कभार मुश्किल हो जाती है, उन्हें पता ही नहीं, कि ब्लाग है क्या, और वहाँ पहुँचें कैसे, और करें क्या ? अन्तिम पैरा, सार ही कहें, उन्हीं को समर्पित, जो जाने को आतुर तो हैं, रास्ते से अनजान हैं।
तो साहब, भले सब भूल जायें पर इतना भर याद रखें कि ब्लाग, यानी एक जगह, वाचनालय जैसी, जहाँ मेरे लिखे, और लिखे जा रहे सारे वक्तव्यादि, एक ही जगह, करीने से लगे मिलेंगे। जब मन हो, आ जायें। मेरा ही बनाया है तो आपको पता है क्या मिलने वाला है, और क्या नहीं मिलने वाला है। आपको सुविधा है कि आप सुझाव, या फिर कोई आलोचना, या सादा सी टिप्पणी भी वहां, खुद लिख सकें। आप किसी खास टापिक की फर्माइश भी कर पायेंगे। अगर आप फौलो, या सब्सक्राइब का विकल्प चुनें तो नई पोस्ट होते ही आपको खबर भी अपने आप मिलेगी।
ब्लाग तक पहुँचने का रास्ता, बहुत ही आसान है। नीले रंग की लाइन देख रहे हैं ना, जिसके नीचे रेखा खींचकर, उसे अलग सा दिखाया गया है। उसे अपनी उंगली से टैप करना है, बस, हो गया। अगले ही पल आप ब्लॉग पर होंगे। प्रायः हर रचना के साथ, एक तस्वीर भी है, टैप करें और हो गया। रचना प्रस्तुत है,। वापस जाइये, कोई और तस्वीर पर टैप करिये, वो खुल जायेगी। है ना आसान ?
फिर भी असुविधा हो तो, हम हैं ना ? संकोच ना करें, ना आने में, ना आने में सहायता लेने में। आप आमंत्रित हैं। एक बार के लिये आग्रह, दोबारा के लिये... आपका मन। आयेंगे तो अहो भाग्य, नहीं आयेंगे तो भी आभार, पहली बार तो आये ही थे ना, उसी के लिये 😀
Embarrassment Diffused ? No Idea ??
चलते फिरते:
गये किसी रविवार को, एक डॉक्टर साहब हैं, उनका जन्मदिन हुआ। मित्र भी हैं, सम्बन्ध भी मानते हैं और असल से कम नहीं निभाते, भले आधी रात आजमा लो।
फोन किया, तो उठा नहीं, मैसेज छोड़ दिया। आम तौर पर ऐसे में, उनका वापसी फोन जरूर आता है, यथाशीघ्र। क्षमा भी मांगते हैं, कारण भी बताते हैं और अपेक्षित भी करते हैं।
पहली बार ऐसा हुआ, कि ऐसा नहीं हुआ, और कारण, हमारे बधाई संदेश पर उनसे आई हुई, कोई ऐसी वैसी क्लिप। ऐसी वैसी, मतलब ऐसी वैसी, हालांकि चन्द सैकन्ड्स की, और फिर सन्नाटा, घटाटोप !
ये तो थी पृष्ठभूमि, नीचे साझा कर रहा हूँ, वार्तालाप, माइनस क्लिप। ठीक है ?
पहला दिन -
"डा साहब, नमस्कार 🙏
आपको फोन कर रहे थे, भूल गये थे कि छुट्टी का दिन है, सुबह देरी से हो सकती है।
कुछ खास नहीं, ध्यान गया कि आपका जन्मदिन है, तो बधाई देने का मन हो आया।
कुबूल हो, बधाई भी, आशीर्वाद भी, और शुभकामनायें भी 👍"
**********
क्लिप का आ टपकना, और फिर सन्नाटा
**********
अगले दिन -
"आखिर जन्मदिन था आपका, डाक्टर साहब, साल में एक बार तो आता है, तो हक पूरा-पूरा बनता है आपका, जैसा मन हो, वैसे मनायें, जो चाहें, प्रसाद में बांटें 😜
कुछ शौक, सार्वजनिक नहीं होते, और सच यही है कि आपके सान्निध्य में हर बात सहज नहीं होती, सम्बन्ध ही ऐसा है। 😀
मुझे मालूम है, यह चूक ही हुई है । वैसे, कोई इतनी बड़ी बात भी नहीं। अपराध बोध से, कृपया मुक्त हो जायें। मैं, खुद कर रहा हूँ। सोचता था जन्मदिन पर, उपहार क्या दें, यही सही 👍"
Surviving the SYSTEM
An erstwhile colleague approached me last night, seeking advice, convinced and willing to help his confidante, under transfer, but how?
"Ek chiz bataiye, jaise kisi ka transfer hua hai aur use relieve na karna ho to uska process kya hai ?"
And thus, I responded:
"You should've shared full details.
Transfers are serious policy matters of Government, often initiated by interested, powerful forces, who won't let them go uncomplied with, under pretext of discipline and subordination. If not done tactfully, the protector may have to run for cover, himself.
Key is never to confront head on, but to deviate, or side pass it. Monitoring of compliance, seldom extends beyond about a month, and idea is to let this crucial time pass. Nobody bothers later.
The more sensible, and easy is to request is, to seek time, extension of relieving and joining deadlines, on the pretext of some innocent, yet inevitable and adequately justifiable reasons. Having provided firm ground, the key authority can be persuaded to go along, or look the other way.
Just a matter of time. 😀"
Love stories from IITR
INSTINCT - Elections
The comparison
कल की ही बात !
कल का दिन, बहुत खास रहा।
मेरी सदा, बहुत कानों तक पहुँची। स्नेह तो बरसा, मगर कुछ अपने आहत भी हुए । आहत हमेशा अपने ही होते हैं, जितने करीब, उतनी गहरी चोट। गैरों के लिये तो आप होते ही कहाँ है, जो फर्क पड़े। गलती हुई, या गलतफहमी, दर्द हकीकत है, और खेद, बनता ही बनता है।
बोलें तो, मैं विशुद्ध धार्मिक व्यक्ति हूँ। यद्यपि, धर्म की मेरी अवधारणा 'सामान्य' नहीं,
घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूँ कर लें।
किसी रोते हुये बच्चे को हँसाया जाये।।
मैं समर्पित आस्तिक भी हूँ, पवनपुत्र मेरे आराध्य हैं। मगर उनसे साक्षात्कार के लिए, मुझे कहीं जाना नहीं होता। वो तो हमेशा मेरे अन्दर, मेरे दिल में ही रहते हैं, हर जगह मेरे साथ-साथ ही आते जाते हैं, और बच्चे सा संरक्षण, देते ही रहते हैं, अनवरत !
अब सामने वाले के दिल में, अगर कोई और है। भूमिका वही है, भावना वही है, फिर तो अपनी ही बिरादरी का ना हुआ। शक्ल अलग हो, कुछ बड़ी बात नहीं, जरूरी भी नहीं, अलग कार से चलता हो तो भी क्या, जाना तो सबको वहीं है । परमपिता की फोटोकापियां, नहीं होतीं, और कोई कर भी ले तो किसी काम की नहीं होती। समझ समझ की वात है।
पूजा स्थलों के वर्तमान स्वरूप, और उपयोग से मेरी सम्पूर्ण सहमति नहीं, यद्यपि इतना सही है कि जब कोई स्थान, या प्रतीक, जब नियत और चिन्हित हो जाता है तो उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव, आगन्तुकों पर अत्यंत सकारात्मक और प्रभावकारी होता है, विचारों के बिखराव को रोकता है, और वातावरण में जैसे सान्निध्य की एक अनुभूति, पवित्र-पावन सी, सहज ही उपलब्ध होती है।
परमपिता से मेरा सम्बन्ध व्यक्तिगत है, सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं, और मुझे जो भी प्राप्त है, उसी का प्रसाद है। जो मन हुआ, सब कुछ मिला हो, ऐसा नहीं है। अबोध के हाथ, उस्तरा कौन देता है ? जो मिला, उसकी कृपा, नहीं मिला, उसका संरक्षण।
अब तो सैटिंग हो गई है, बिना कहे सुने ही सब होने लगा है, असीम कृपा 🙏
इक रोज़ - ख़ासमखास !
ईद-उल-अज़हा के मुकद्दस मौके पर, अपने सभी मुस्लिम दोस्तों को दिली मुबारकबाद !
कहा जाता है कि आज के दिन, अपने किसी अजीज़ की कुर्बानी का रिवाज है। बाहर जो भी करें, या ना भी करें, मेरी आरजू है कि तलाश, इस बार अपने अन्दर से ही शुरू करें। कुर्बानी लायक कितने ही जनावर, आपको वहाँ छुपे-छुपे ऐश करते मिलेंगे। मिसाल के लिये, नफरत, बेइमानी, खुदगर्जी, जहालत, काहिली... वगैरह वगैरह।
आप कहेंगे, अजीज भी तो होना चाहिए ! तो साहब, मानें ना मानें, अच्छाई के मुकाबिल, बुराई हमेशा से ही, आसानी से, और अन्दर तक, घर बनाती आई है, और अजीज भी होती ही है, किसी की जाहिर, किसी की राज़ 😀। तो इस बार अन्दर से....
यह काम, गैर मुस्लिम भी कर सकते हैं। अन्धेरे से उजाले की तरफ जाना हो तो मजहबी महूरत क्या देखना।
और हाँ, यहाँ संग-साथ के चक्कर में ना पड़ जाना। इस रास्ते जाना ही काफी। अकेले हो तो भी, काफिला बनते देर लगती है ? 👍
Interactive Highlights 200721
नमस्कार 🙏,
आज मेड अवकाश पर है, वैक्सीन लगवाने गई है, तो धर्म पत्नी पर काम का बोझा, थोड़ा एक्सट्रा है।
दूध को आप से उबलने छोड़ दो, तो नियंत्रण बाह्य होते देर नहीं लगती, तो यह प्रक्रिया, अपनी निजी देखरेख में, सम्पादित कराने का अनुरोध हुआ है।
चुनांचे, दूध उबलते देख रहा हूँ, और सोच भी रहा हूँ कि उबलने से तात्पर्य है, एक निश्चित तापमान तक पहुँचना, आयतन बढ़ने लगता है जिसे सीमांत पर रोक देना। यही कर्तव्य है, धर्म है, योग्य है । कतिपय हानिकारक जीवाणुओं के शमन में, सहायक होता है।
फिर लगता है कि तापमान छूना भर पर्याप्त नहीं, इतने भर से जीवाणुओं का बाल भी बांका हो, कोई जरूरी नहीं। उस तापमान पर, जरूरत भर, रुकना, और जीवाणुओं का समूल नाश सुनिश्चित करना, आवश्यक होना चाहिए। कितना ? नो आइडिया !
अपने यहाँ, अनेक जीवन वैज्ञानिक भी होगें ही। कोई विद्वान प्रकाश डालना चाहें 😀
ये अपुन का स्टाइल है। पूछना है कि दूध कितनी देर उबालना चाहिये ?
1.
"हर चीज का एक बैलेंस होना बहुत आवश्यक है ज्यादा उबाल भी खतरनाक साबित हो सकता है और बिल्कुल शांत रहना भी खतरनाक साबित हो सकता है इसलिए किसी भी चीज को नष्ट करने के लिए जो कि आप को नुकसान पहुंचाती है थोड़ा उबाल भी जरूरी है बट उस उबाल पर कंट्रोल होना भी बहुत जरूरी है🙏🏻"
"आदर्श जवाब, सरकारी सा। छानने बैठो, तो उपयोगी ? उससे क्या ??"
2.
"जीव वैज्ञानिक जो भी कहें, सम्भवतः महामहिम की आपसे इतनी सी अपेक्षा है कि दूध में उबाल भी आये और भगोने की मर्यादा रेखा को पार भी न कर सके। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु कुकिंग रेंज की knob का प्रयोग निर्बाध रूप से किया जा सकता है।
वैधानिक चेतावनी-
न्यूटन या जेम्स वाट बनने के चक्कर में यदि दूध उबाल कर बाहर गिर गया तो महामहिम के मन का उबाल अत्यंत घातक होगा। 😊😛😛
जीवाणु संहार हेतु एक उबाल काफी है। 😌"
"यथार्थ ! वैसे जिज्ञासा, भावी संदर्भ हेतु, और दूध उबाल कर सुरक्षित रख देने के बाद ही प्रकट की गई थी 👍"
"😊😌"
"पिछले दिनों, जाते जाते कुकर की सीटियाँ, तीन तक गिनने के निर्देश मिले थे। मैंने तो अट्ठाइस तक गिनीं, फिर आनी ही बन्द हो गईं। इसके बाद भी नाराज़गी, अभी तक समझ नहीं आई 🤔"
3.
"उबालना खुदगर्ज़ वयवस्था है जो इंसान ने बनाई है । वरना दूध को तो कच्चा ही गृहण किया जा सकता है"
"केवल ताजा दूध, दीपक जी, तत्काल निकाला गया !"
"We want to hold or hoard, which nature want immediate use"
"Won't disagree. Natural is catering for immediate needs. We wish to insure future, too. That leads to hoarding, imbalance and many more complications, that we are paying so dearly for"
जरा सोचिए
जरा सोचिए,
यहाँ की आपा-धापी से पिण्ड छुड़ाकर, भागते दौड़ते, आप ऊपर, परम पिता के पास पहुँचें। बांहें फैलाये, गले लगा कर वो आपका स्वागत करें, और पूछ ही बैठें,
"और, स्वर्ग में आनन्द तो आया न ?" 😀
खुशी की बात !
चन्द लम्हे खुशियों के, यानी क्षण आनन्द के, सुख के, बाबा के मोल। आजकल मिलते ही कहाँ हैं ? भाग्य की बात !
आपको जब मिलें तो जी भर के जीना, एक एक बूंद पी लेना, उत्सव मनाना। बार बार कहाँ ही होता है, मगर एक काम और भी करना, कारण भी खोजने का प्रयास करना। आसान नहीं है, मगर करना जरूर !
अगर सफल हुये, तो सौभाग्य, उपाय मिल गया। जब मन हो, इसी रास्ते चल देना। मगर कठिनाई भी है, एक तो ऐसे रास्ते स्थाई नहीं होते, अच्छे रास्तों पर, टूट-फूट कुछ ज्यादा ही जल्दी होती है। और फिर, रास्ते पर बार-बार आना जाना हो तो फिर वो नया कब रहता है, आदत होती जाती है और असर कम होता जाता है। एक दिन, बेकार !
वजह, अगर ना मिल पाये, तो निराश होने की नहीं, परम संतोष की बात है। परम सौभाग्य 👌। अगर सच में, अकारण है तो वह शाश्वत होगा। कारण ही नहीं, तो समाप्त क्या होगा, यह आपके साथ-साथ, हमेशा हमेशा रहने वाला है। आप पार हुए !
नैनं छिदंति शस्त्राणं, नैनं दहति पावकः ... 👍
रास्ते के मोती !
असाधारण और प्रेरक
रास्ते के मोती
ऐंवे ही !
तू,उस दिन तो मेरा ख्याल, जरूर ही कर लेना।जिस दिन, मेरी पात्रता, थोड़ी कम पड़ रही हो।
उसी दिन तो, मुझे तेरी जरूरत, सबसे ज्यादा होगी 😀
Favorites Few, Recalled 11

Favorites Few, Recalled 10
05-07-2021

THE QUEUE....
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तू बच के , भागेगा भी , कहाँ , नामाकूल ! ये तमाशबीन , ये पुलिस , ये कानून , सब, उसी के तो हैं , तेरे हिस्से , जेल , जलालत , पंखे ...