एक काल्पनिक घटना से अपनी बात कहने की कोशिश करता हूँ, सुदूर दुर्गम क्षेत्र से, जहाँ लोगों को नजदीक और अच्छे से दुनियाँ और उसकी तरक्की को देख पाने का अवसर नहीं हो पाया, कोई दृढ़ संकल्पी, तमाम मुश्किलों और तकलीफों से पार उतर, वायु सेना को चुना गया। ट्रेनिंग बाद, पासिंग आउट उत्सव में, उसने अपने बुजुर्ग मां-बाप को भी आमंत्रित किया।
नियत दिन, जब दर्शकों में उसके अपने जन्म दाता भी शामिल थे, उसने हवाई जहाज उड़ाने में, अपने सर्वश्रेष्ठ कौशल का प्रदर्शन किया। क्या रफ्तार, क्या फुर्ती, क्या ऊंचाई, क्या कलाबाजियां, क्या नियंत्रण... सारा मैदान तालियों के शोर में डूब गया। उसे सर्वोच्च सम्मान उपलब्ध हुआ। अवसर मिलते ही, वह माता पिता के पास आया, पैर छुये और पूछा कि उन्हें कैसा लगा ? पिता तो चुप रहे, मगर माता से ना रहा गया,
"खानदान कौ नाम कद्दौ बेटा, इत्ती तारी, सब ताईं, इत्ती वाह वाह, नजन्न लगै, बेटा, छाती चौड़ी है गई। ऐसे ई खूब तरक्की करौ 🤚, दिन दूनी, रात चौगुनी !
वैसे एक बात बोलें बेटा, उड़ाय तौ लेत हो, पर अबई लहकत है, डगमगात बहुत है, धीरे धीरे हाथ रमा हुइ जैये तो फिर सीधे चलन लगौगे ! का है कि डर लगत है, गिरि गिराय परौ तो चोट लगैगी, सो लगैगी, नुकसान अलग । सो नैंक हाथ पांय बचाय कै"
बात हंसी-मजाक की हो सकती है, मगर देखें तो एक मां की ममता, गौरव और बेटे का हित चिन्तन अपने चरम पर है। अलग बात है कि उन्हें एक परिवेश विशेष का अनुभव, और वैसी समझ उपलब्ध नहीं हो पाई, कुछ संयोग, कुछ हालात। उनका अपना दोष, ना बराबर, और जो कुछ रहा भी हो तो अपनेपन के चमकते सूरज की चकाचौंध में, टिकता कहाँ है।
एक जहाज, मैं भी उड़ा रहा हूँ आजकल। दर्शक, कुछ कौतूहल, कुछ कृपापूर्वक प्रोत्साहित करने खुद आये है, प्रायः आते ही हैं। बहुत लोग ऐसे हैं कि जिन्हैं खबर ही नहीं हो पाई है अभी तक, और यही प्रयास, ऐजेन्डे पर सबसे ऊपर है। पाती हर तरफ, और दूर दूर तक जाये, ऐसा अनुरोध आपसे तो हो ही रहा है, स्वयं मैंने भी इधर व्हाट्स एप पर, ब्राडकास्ट की मदद ली थी।
प्रतिफल तो मिला, उम्मीद से ज्यादा मिला, मगर देखने में यह भी आया कि बहुतों के पास, इच्छा तो भरपूर है, मगर बोध की शक्ति नहीं है। वैसा अनुभव का अवसर, कभी हो ही नहीं पाया उन्हें। कुछ भाषा भी कभी कभार मुश्किल हो जाती है, उन्हें पता ही नहीं, कि ब्लाग है क्या, और वहाँ पहुँचें कैसे, और करें क्या ? अन्तिम पैरा, सार ही कहें, उन्हीं को समर्पित, जो जाने को आतुर तो हैं, रास्ते से अनजान हैं।
तो साहब, भले सब भूल जायें पर इतना भर याद रखें कि ब्लाग, यानी एक जगह, वाचनालय जैसी, जहाँ मेरे लिखे, और लिखे जा रहे सारे वक्तव्यादि, एक ही जगह, करीने से लगे मिलेंगे। जब मन हो, आ जायें। मेरा ही बनाया है तो आपको पता है क्या मिलने वाला है, और क्या नहीं मिलने वाला है। आपको सुविधा है कि आप सुझाव, या फिर कोई आलोचना, या सादा सी टिप्पणी भी वहां, खुद लिख सकें। आप किसी खास टापिक की फर्माइश भी कर पायेंगे। अगर आप फौलो, या सब्सक्राइब का विकल्प चुनें तो नई पोस्ट होते ही आपको खबर भी अपने आप मिलेगी।
ब्लाग तक पहुँचने का रास्ता, बहुत ही आसान है। नीले रंग की लाइन देख रहे हैं ना, जिसके नीचे रेखा खींचकर, उसे अलग सा दिखाया गया है। उसे अपनी उंगली से टैप करना है, बस, हो गया। अगले ही पल आप ब्लॉग पर होंगे। प्रायः हर रचना के साथ, एक तस्वीर भी है, टैप करें और हो गया। रचना प्रस्तुत है,। वापस जाइये, कोई और तस्वीर पर टैप करिये, वो खुल जायेगी। है ना आसान ?
फिर भी असुविधा हो तो, हम हैं ना ? संकोच ना करें, ना आने में, ना आने में सहायता लेने में। आप आमंत्रित हैं। एक बार के लिये आग्रह, दोबारा के लिये... आपका मन। आयेंगे तो अहो भाग्य, नहीं आयेंगे तो भी आभार, पहली बार तो आये ही थे ना, उसी के लिये 😀