जीवन-चक्र !

जीवन-चक्र, कुछ-कुछ, साइकल के पहिये जैसा, और आप उस पर फिट, वाल्व-बॉडी। जीवन में, सार भरा जाता है, आप ही के बलबूते !

पहिया चलता है तो आप भी चलते हैं, साथ-साथ। सिर्फ चलते ही नहीं, जमीन से देखें तो ऊपर-नीचे भी होते रहते हैं, यही आपके जीवित होने का प्रतीक भी है, प्रमाण भी।

बोलें तो, कभी अगर आप शीर्ष पर हैं तो घमंड कतई ना करें, इसलिए कि कोशिशें लाख कर के भी, हमेशा तो आप, वहीं, टिके रह नहीं पायेंगे।

ऐसे ही कभी, फर्श पर हों, तो धीरज बनाये रखें, कोशिशें होती रहें, आप हमेशा, वहीं पड़े, नहीं रहने वाले। वक्त बदलता ही है, हर किसी का, और बिना किसी संदेह, सही वक्त पर, वक्त वक्त की बात !

ये भी कि, आपकी प्रासंगिकता, पहिये के चलते रहने तक, केवल। थम जाये तो ना कोई पूछे पहिये को, ना वाल्व बॉडी को, ख़ालिस सोने की हो, तो भी। कहानी बन के रह जाते हैं, सब कोई, धीरे धीरे भुला दिए जाने को, एक दिन !

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