एक बात, जिससे हर कोई राजी होना चाहिए, ये कि दुनियाँ में, अच्छाई बची कहाँ ? और जो भी है, लुप्त होती जा रही है, बहुत तेजी से। अँधेरा ही अँधेरा, हर तरफ, रोशनी कहीं से आती, नज़र नहीं आती।
अच्छा, अपने अन्दर झाँका ? वहाँ भी नहीं, फिर तो उम्मीद कोई, बची ही नहीं। रोशनी, किसी भी दीपक की, अन्दर से, बाहर ही जाती है, बाहर से अन्दर तो, कभी नहीं ना आती।
तो देखो-भालो, रि-सेट कर के देखो, अगर कामयाब हुए, तो अँधेरा छटते, कितना ही घना, घनघोर क्यों ना हो, देर नहीं लगेगी। और फिर, जोत से जोत, रोशन हो पाने की उम्मीद बनती है। भले देर-सबेर हुआ करे, कोना कोना, रोशन हो कर रहेगा, गारन्टी समझो।
अगर बैठे हो, पड़ोसी के दिए के सहारे, तो बैठे ही रह जाओगे, इसलिए कि वह खुद, इसी भरोसे, हाथ पर हाथ रखे, बैठा हुआ है, ठीक, तुम्हारी ही तरह !
अप्प दीपो भव !
ये अकेला भी, हो सकता है, अकेला ही, हो भी सकता है, और अकेला ही, पर्याप्त भी होता है 🤗
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