अगरचे, समेट-बटोर के, खुद को, वापस खड़े हो सको, तो बुराई कोई टूट कर, बिखर ही जाने में, कोनी।
जैसे, कम्प्यूटर, रिसैट कर दिया हो। फालतू प्रोग्राम सब जाते रहे, जो बचे, समय अद्यनित हो गये, प्रासंगिक हो गये, तो बेहतर तालमेल से चलेंगे।
यकीन मानिये, जल्दी बूट होंगे, स्मूथ चलेंगे और गरम भी नहीं होंगे, बे-मतलब, खाम-खाँ !
जीवन में, कभी-कभार, यही इष्टतम विकल्प, बचता ही है, यूँ लाइफ तो, हर कम्प्यूटर की हुआ करती है, कोई कम, कोई थोड़ी-बहुत ज्यादा, अमर कोई नहीं।
ना कम्प्यूटर, ना इन्सान ! 😂
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