निष्प्राण हो जाये शरीर, तो उसे घर में रखो, या कर दो निस्तारित, फरक कोनी। बल्कि निस्तारित ही करने का विधान है, इसलिए कि रखे, लाभ तो कोई नहीं, उलट आपके नित-प्रतिदिन के कामकाज में, अड़ंगा ऊपर से। रिश्तों का भी, कुछ-कुछ, ऐसा ही है।
अगर हिचकिचाहट है, अभी भी, तो एक ही अर्थ, मृत नहीं है, मृतप्रायः हो सकता है। साँस धीमी कितनी भी हो गई हो, चल रही है, रुकी नहीं है, पूरी तरह। और जब तक साँस है, तब तक आस है ! अगर इच्छा हो, इरादा हो, कोशिश हो, तो क्या पता ? अगर जीवन, हमने दिया नहीं तो, उस पर अधिकार, पूरा-पूरा, हमारा कैसा ?
मगर, हठधर्मी, फिर जो चाहे, कराये, उचित, अनुचित, गलत, सही, धर्म, अधर्म !
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