दीदी की ननद, कोई चालीस साल पहले, अपनी भतीजी के साथ, डीटीसी की बस में जाती थीं। एक लड़की से नाराज़ हो गई थीं, कि वह दौड़कर, उनसे पहले, बस में चढ़ गई थी, और एक लड़के से, इसलिए, कि उसने उनके लिए, सीट खाली नहीं की थी।
एक ही स्टाप पर, दोनों उतरते थे। पहले लड़की, पीछे पीछे लड़का। उन्होंने पिन निकाली, और चुपके से लड़की को पीछे से चुभा दी। लड़की घूमी, और एक झन्नाटेदार तमाचा, लड़के को जड़ दिया। बस में तो हंगामा शुरू हो गया, और वे शान्ति से, चुपचाप उतर अपने घर चली आईं।
जैसे मुर्गे लड़ाये जाते थे, कभी इसको उकसाते थे, कभी उसको, जब तक, एक दूसरे को मार मार बेदम ना कर डालें, और फिर जिस मुर्गे को भी चाहें, शाम को स्वाद ले लेकर खायें। कभी कभी लगता है, यही हो रहा है, आजकल, कभी उकसावा इधर, कभी उधर, कभी वाह वाह इधर की, कभी उधर की।
मुर्गों का सगा कौन, अपनी अपनी पार्टी की जुगाड़। चिन्ता की बात है कि मुर्गे सत्ता पक्ष में भी हैं, विपक्ष में भी। कोई बाहरी ताकत लड़वा रही है, और हम, तमाशबीनों की तरह, मजा ले रहे हैं, लगे पड़े हैं। बोटी एक, आपके हिस्से आने वाली नहीं, पूरा दिन खोटी हुआ, अलग 😂
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