ऊपर उठना हो, तो सीढ़ियाँ बहुत काम की चीज़ होती हैं, विरासत में मिलें, या गिफ्ट में, या तिकड़म से, या संयोग से।
इनकी मौज़ूदगी, मददगार बेशक हो, काफी नहीं होती मगर। अग़र सलीका ना हो, तो आपके ऊपर उठने की जगह, आप सीढ़ी को ही, नीचे लेकर भी आ सकते हैं।
सारे, हक-हुकूक, रखे रह जाते हैं, ताक पर !
वज़न तो, जित्ता कम, उत्ता बढ़िया, और यहाँ, वज़न के मायने बहुतेरे !
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