"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:"
अर्थात्, जहाँ नारियों की पूजा की जाती है, वहाँ देवता रमते हैं। अर्थात् देवता वहीं रमते हैं, जहाँ नारियों की पूजा की जाती है।
नि:सन्देह, बराबर है, सौ फ़ीसदी बराबर है। वहीं रम ही सकते हैं, वरना पूजा-अर्चना, थोड़ी-बहुत देर के लिए, ना सही बन्द, पाॅज़ करके ही देख लो। अरे, देवताओं को छोड़ो, आप ख़ुद नहीं टिक पाओगे !
आजमा भी सकते हो, जान-जोख़िम, सब आपका।
Joking ! ...I was, just joking !!
HAPPY WOMEN'S DAY !!!
मज़ाक अपनी जगह, सीरियसली बराबरी के दावों, और कोशिशों के इस दौर में, इतना समझने जैसा है कि दोनों ही, अतुलनीय हैं, इसलिए कि शारीरिक, और मानसिक रूप से, बिल्कुल अलग-अलग हैं, और ये, स्वयं, सृष्टा की योजना है, हमारी, या आपकी, इसमें कोई भूमिका नहीं।
दोनों ही अधूरे बने तो हैं, परन्तु सृजित हैं, अनुपूरक, यानी अगर चाहें तो, एक दूसरे को, पूरा भी कर सकते हैं। प्रतिस्पर्धा की तो, बात ही, मूर्खतापूर्ण, बेतुकी और सारहीन है।
उदाहरण के लिए, स्त्रियाँ दिल पर, निर्भर अधिक करती हैं, पुरुष दिमाग़ पर। ऐसा शायद सांसारिक भूमिकाओं के अनुरूप है। स्त्रियाँ सोचा भी, दिल से करती हैं तो पुरुष, प्यार भी दिमाग़ से ही, किया करते हैं।
दोनों सहारा बनें, एक दूजे का तो, दोनों का ही काम, बन भी सकता है। सोचने का सारा दारोमदार दिमाग पर आ जाये, और प्रेम का दिल पर। आवश्यकता है तो नहीं कहने की कि, यह सुखद परिणति हुई, परमपिता के आशयानुकूल !
अहं को इतना निरीह, और कमज़ोर भी ना समझा जाये। अगर अड़े ही रहे, प्रतिस्पर्धा, और बराबरी पर, जो आंशिक ही सही, कुछ काम तो ऐसे भी होंगे ही, जो, नैसर्गिक प्राविधानों के विपरीत होंगे। जबरदस्ती भी होगी, असहजता भी और अचीवमेंट, अधिक से अधिक, काम चलाऊ !
मर्जी आपकी, आख़िर जीवन है, आपका ही ना ?
पुनश्च: नारी का लक्ष्य वही, ना हो जो पुरुष कर लेते हैं, वह हो जो, पुरुष करना तो दूर, सोच भी ना पाएं 👍
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