चुनाव !


महाभारत में एक पात्र हुए हैंधृतराष्ट्र। जन्मांधभाग्य कहेंया नियतिजीवन भरआधे-अधूरे होने का मलाल रहा उन्हेंमगर कोई करता भी क्या ?

 

फिर उनका विवाह हुआगांधारी सेवे अन्धी नहीं थींकोई मजबूरी भी नहीं थीमगर अन्धा होना, चुना उन्होंनेआँखों पर पट्टी ही बाँध लीप्रेम की पराकाष्ठाकहेंया कर्तव्य बोध कीया क्रोध कीहताशा कीमूढ़ता कीदोनों हीइस बार चुनाव सेअन्धे हो गये।

 

"अन्धे अन्धा ठेलिया, दोऊ कूप पड़न्त !"

 

चुनाव ठीक रहा होता तो, शायद दुर्योधन को 'दुर्योधन' होने से रोक ही लेते, कौन जाने ?

 

संग-साथ के नाम पर, यही अपेक्षा, अभी भी जिन्दा है। कुँए से बाहर रहना, ताकि साथी अगर गिर ही जाये, तो निकाल पाने की सम्भावना तो, जीवित बनी रहे,आसान नहीं। 

 

भावनायें, अक्सर औचित्य पर, भारी पड़ा करती हैं 😃

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THE QUEUE....