ना दूर की, ना पास की, वहाँ की, जहाँ आपने, सँभाल के रखा हो, देख-भाल की हो, हवा-धूप-पानी की, फिक्र करी हो।
प्रायः यही, नहीं ना करते, लोग !
उन्हें नजदीक की, इधर की सूखी, और उधर की, दूर की, हरी, नज़र आती है, तो दौड़ के, उधर, चले जाते हैं। वहाँ पहुँचते हैं, तो वहाँ की सूखी, और इधर की ही हरी, दिखने लगती है, तो फिर दौड़ पड़ते हैं, इधर की ओर। दौड़ते-दौड़ते, हाँफने लगते हैं, घास हरी, कहीं भी मिलती ही नहीं। होती ही नहीं, कि भाग-दौड़ ही करते रह गये, पानी तो, कहीं दिया ही नहीं, घास सब जगह, सूखती ही चली गई।
क्या ही अच्छा होता, रुक ही जाते, कहीं भी, और पानी देते, ख्याल रखते, घास, वहीं की हरी, हो गई होती, भले देर सबेर होती। 😀
आना-जाना जरूरी ही होता, अगर, तो फव्वारा साथ रखते, जहाँ भी रहते, हरियाली, साथ-साथ चलती 🤗
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