सबसे अच्छा तो ये, कि अपनी गाड़ी, खुद ड्राइव करें। न पूछना मजबूरी, न बताना, न मानना ही, न मनवाना, फुल कन्ट्रोल ! किसी और की हैल्प भी, और सपोर्ट भी, ऑप्शनल ही रहे, कम्पलसरी नहीं, तो ही ठीक !
अगर कारण हों कोई, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, प्रशासनिक, और चालक सुलभ हो, तो उसका काम, उसी पर छोड़ें, आख़िर कुछ सोच-समझकर ही, उसे पात्रता, प्रदान हुई होगी। आराम से बैठें, पिछली सीट पर, और सफर का आनन्द लें।
अब सवाल वर्चस्व, या तो फिर प्रासंगिकता, का हो, या फिर सक्रिय प्रतिभाग के, कर्तव्य-बोध का, और रास्ते बताने ही हों, तो पहले, कृपा करें, और रूट विकल्पों को जान भी लें, समझ भी लें, याद भी रखें, और हाँ, रास्ता भटक ही जायें तो, उत्तरदायित्व भी वहन करें, ना कि बलि चढ़ा दें, किसी बेकसूर को ही।
अन्यथा, ड्राइवर आपके, अनावश्यक, अनचाहे, खाँम खाँने, इन्टरफरेन्स को, स्क्रीन ना करे, तो करे, आख़िर क्या ? हुई साँझ, और मंज़िल ना पहुँचा तो पूछा, उसी से ना जायेगा। सुरक्षा का उत्तरदायित्व है, आख़िर, खुद से भी ज्यादा, गाड़ी का, और आपका भी, औरों से भी, और खुद आप से भी !
और, टेन्शन की तो, बात ही कोनी। वाह-वाही तो, आप ही की होनी है, हर हाल। छीछालेदर, सब ड्राइवर की 😊
सोचने, समझने की बात, और समय रहते !
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