नौकरी, जैसे हवाई जहाज़ का सफर। टेक ऑफ कभी भी किया हो, कहीं से भी किया हो, दूरी कितनी ही रही हो, ऊँचाई कोई भी पकड़ ली हो, मौसम ख्रराब भी हुआ ही होगा कभी-कभार तो, डरावना टर्बुलेन्स, सीट बैल्ट, अब लगाओ, अब खोल सकते हो, सार किसी का, अब कोई भी नी।
सार है तो इतना कि लैण्ड, हर फ्लाइट होती है, एक ना एक दिन, देर-सबेर बात अलग । खुशकिस्मत हैं कि लैण्डिंग सेफ हुई है, हैप्पी हुई है। इतने सारे लोग रिसीव करने आये हैं, सी ऑफ करने भी। अब वक्त, घर लौटने का है, अपनी मर्जी की ज़िन्दगी जीने का है। सफर का कचरा, साथ ले जाने का नी। शुक्रिया उसका, जिसने सहूलियतें दी, सफर खुशनुमा और आसान बनाया, उसका भी जो मुश्किलों का सबब बना, और आपको सबक दे गया, मजबूत और समझदार बना गया।
सफर के गिले-शिकवे-शिकायत होंगे तो, मगर सब कचरा है, साथ ले भी जाना, काए को ? अच्छी यादें, कीमती अनुभव, जगह-जगह खरीदा हुआ, पसन्दीदा सामान, सुनहरे सपने, यही सब साथ ले जाने लायक है। घर सजाइये, संवारिये, और आराम से रहने लायक बनाइये, बनाये रहिये, और भूलिए मत, कि उस घर में, आप ख़ुद भी आते हैं
तो ढेर बधाइयाँ, सारी शुभकामनायें, आशीर्वाद !
और हार्दिक स्वागत, "ठलुआ क्लब" में ! 😀👍
कल से, नई सुबह, नया दिन, नया संवत्सर, नया जीवन, मतलब नई जीवन शैली !
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