रायता फैलाने का, पहले से आखिरी तक, हक तो उसी को, जो वक्त-ए-ज़रूरत, समेटने की, क्षमता भी रखता हो, इरादा भी, बगैर ईगो बीच में लाए।
जबरदस्ती तो, कुछ भी करो !
मगर, कोई आपसे भी जबर, अपना रायता फैलाए, और छोड़ जाये, समेटने को, आपके लिए।
तो शिकायत कैसी ?
सोच तो, आपकी वाली ही हुई, ना 😂
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