काम का, एक ही काम किया, कि धीरे-धीरे, मैं, चुप होता चला गया।
अब मुझे किसी को भी, कुछ भी साबित करने की, कोई ज़रूरत ही नहीं।
मुझे, किसी से भी मनवाना ही नहीं, कि कितना महान हूँ मैं।
जो रायता, मैंने फैलाया ही नहीं, उसे समेटने का ठेका भी, मेरा कोनी।
अपनी हैसियत बढ़वाने को, अब किसी से, ना कोई झिक-झिक, ना चैं-चैं ।
जो मन करे तुम्हारा, सो करो, और आप ही, जानो भी,
बस, भगवान करे, किसी दिन, पछताना ना पड़े।
जहाँ तक मेरा है, अपुन, मस्त, बिन्दास, आज़ाद...
बढ़ता हुआ, आगे ही आगे, शान्त, संतुष्ट, टेन्शन फ़्री ।
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