क्रास फायर में, जख़्म, अक्सर वही निरीह खाते हैं, जिनका वास्ता, दूर दूर तक नहीं होता, किसी राइफल बन्दूक से। कोई बुलेट-प्रूफ जैकेट, उन्हें मयस्सर नहीं होती, और मौज़ूदगी, कम्पलसरी।
ज़ख्म उनके, कोलेटरल डैमेज, बता कर, राइट ऑफ कर दिए जाते हैं, कोई हमदर्दी, मिजाज़पुर्सी, या तो फिर तीमारदारी को, फटकता नहीं। फटके, कहाँ से, प्रतिपक्षी से ध्यान हटे, तब तो !
ये, जंग का मैदान, घर-घर की कहानी। विवाहित बेटा, पत्नी और माँ के साथ। कौन कौन ?
इब, ये भी बताऊँ के ? 😂
पुनश्चः जान-जोख़िम का ये डर, एक बार, घर कर गया, सो कर गया। ता-उम्र निकलता नहीं, झड़प के साथ भी, एक पक्ष जाता ही रहे, तो भी 😇
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