AD - Acknowledgement Due

शायद, मेरे बचपन की, सबसे पुरानी यादों में शामिल हैं, ये संस्मरण। इतनी पुरानी, कि साथ कौन था, ये भी याद नहीं। था निश्चित, कोई बड़ा, मेरे साथ ही लेटा होता और मैं कहता, कोई कहानी सुनाने के लिए।

वो खुशी खुशी, राजी भी हो जाता, मगर 'हूँकरे' की शर्त के साथ। जो नहीं जानते, हूँकरा, यानी कहानी की हर लाइन के बाद, 'हूँ' की आवाज। टेक्नीकली, ये होता है, एकनौलेज्मेन्ट, यानी संकेत कि बच्चा सो नहीं गया है, जागा है, और कहानी, लाइन दर लाइन, ध्यान से सुन भी रहा है। हूँकरा खतम, बोलें तो बच्चा सो चुका, कोई मतलब नहीं, कहानी का, अब। कहानी भी खतम !

अब बच्चे नहीं रहे हम, मगर प्रासंगिकता अभी भी बनी हुई है। आप किसी के लिए, कुछ भी करते हो ग़र, प्रतिफल मिले, ना भी मिले, पावती जरूरी है, पता तो चले, आपकी कोशिशें पहुँच भी रही हैं, उनका मतलब भी, कुछ तो है। वरना, बच्चा सो चुका मान, कहानी खतम कर देना ही ठीक।

जिन कोशिशों के असर, नज़र नहीं आते, धीरे धीरे हतोत्साहित होती जाती हैं, और फिर खतम। और इसमें गलती, कहानी सुनाने वाले की, कोनी !

Note : The picture here-in, is a composition in fact, show casing me with me, only 👐

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