आइये, इस ख़ालिस, मज़ाहिया वाकये को, अलट पलट के, कुछ संजीदा मतलब निकालने की कोशिश करते हैं।
एक तो ये, कि इन्सानी काबिलियत, व्होलसम नहीं, दायरों में बंटी हुई होती है। एक बेहतरीन अभिनेता, काबिले रहम क्रिकेटर भी हो सकता है, ऐसे ही जैसे आला क्रिकेटर को अभिनय का, ए बी सी, भी आता ना हो। हम मान कर चलते हैं कि ग़र एक कोना शानदार, तो कोना-कोना जानदार।
इसीलिए, अक्सर चूक हो जाती है।
लड़की दिखती सुन्दर हो तो उम्मीदें बन जातीं हैं कि खाना पकवान भी लजीज़ ही बनाती होगी। अदाओं में माहिर हो तो, तमीज-तहजीब भी, आती ही होगी। रहन-सहन, इम्प्रैसिव हो तो पखगगढ़ाई में भी तेज होगी ही होगी। कभी-कभार हो भी जाता हो मगर, अक्सर मामला पास होता नहीं।
ऐसे ही लड़के, अगर हैण्डसम हुये तो कोई जरूरी नहीं है कि काम-धन्धे से भी लगे हों। कोई खेल के मैदान का तो चमकता सितारा होगा, मगर पढ़ाई लिखाई में, एकदम फ्यूज बल्ब। ग़र, इजहार-ए-मोहब्बत में माहिर है तो कोई गारन्टी नहीं कि, वफादार भी, होगा ही होगा। एक प्रोफाइल से, पूरा पक्का पता, कुछ चलता नहीं।
बात दूसरी ये, कि अलग-अलग दायरों के कम्पेयरीजन का मतलब कोनी। खेलना है मैच, तो दायरा क्रिकेट का मायने रखता है, और ग़र नाम कमाना है बॉलीवुड में, तो काम आनी है एक्टिंग। और बाजार बन्द हो, डॉमेस्टिक हैल्प, आई ना हो और भूख से हाल-बेहाल हो, तो ना क्रिकेट काम आनी है, ना एक्टिंग।
यही तीसरी बात है। जिन्दगी दायरों में बंटी जरूर होती है, मगर बनती, सब के मिलने से ही है, कोई कम, कोई ज्यादा। डिपेन्ड, इस बात पर करती है कि आम तौर पर, प्लेइंग फील्ड है क्या ? दायरों का परस्पर कन्ट्रीब्यूशन, घटता बढ़ता भी रहता है, और कभी-कभार रिशफिलिंग भी, अनहोनी कोनी।
और आखिरी, सबसे खास बात। टाइम खूब हो, और करने को, कुछ खास ना हो तो, मतलब, बेमतलब की बात से भी खूब निकाले जा सकते हैं, इन्हें लिखा भी जा सकता है, और किस्मत मेहरबान हुई तो पढ़ने वाले दोस्त भी, मिल ही जाते हैं। कभी कभी तो, लाइक्स भी मिल जातीं हैं, तारीफ भी, एकदम फ्री ।
कैसी कही ?
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