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कोई औसरीय आयोजन थाऔर उत्सव का संयुक्त संचालन कर रहे थेसैफ़ और शाहरूख। हंसी-मजाक का माहौलसैफ़ का दावा हुआकि उसे "क्रिकेट और अभिनयप्रतिभायें दोनों हीविरासत में मिलीं हैं"और शाहरुख का व्यंग, "बिल्कुलबेशकमगर अभिनय ले लियानवाब साहब सेऔर शर्मिला आन्टी से क्रिकेट" 😜

आइयेइस ख़ालिस, मज़ाहिया वाकये कोअलट पलट केकुछ संजीदा मतलब निकालने की कोशिश करते हैं।


एक तो ये
कि इन्सानी काबिलियतव्होलसम नहींदायरों में बंटी हुई होती है। एक बेहतरीन अभिनेताकाबिले रहम क्रिकेटर भी हो सकता हैऐसे ही जैसे आला क्रिकेटर को अभिनय काए बी सीभी आता ना हो। हम मान कर चलते हैं कि ग़र एक कोना शानदारतो कोना-कोना जानदार। 

इसीलिएअक्सर चूक हो जाती है। 

लड़की दिखती सुन्दर हो तो उम्मीदें बन जातीं हैं कि खाना पकवान भी लजीज़ ही बनाती होगी। अदाओं में माहिर हो तो, तमीज-तहजीब भी, आती ही होगी। रहन-सहनइम्प्रैसिव हो तो पखगगढ़ाई में भी तेज होगी ही होगी। कभी-कभार हो भी जाता हो मगरअक्सर मामला पास होता नहीं।

ऐसे ही लड़केअगर हैण्डसम हुये तो कोई जरूरी नहीं है कि काम-धन्धे से भी लगे हों। कोई खेल के मैदान का तो चमकता सितारा होगामगर पढ़ाई लिखाई मेंएकदम फ्यूज बल्ब। ग़र, इजहार-ए-मोहब्बत में माहिर है तो कोई गारन्टी नहीं किवफादार भीहोगा ही होगा। एक प्रोफाइल सेपूरा पक्का पताकुछ चलता नहीं। 

बात दूसरी येकि अलग-अलग दायरों के कम्पेयरीजन का मतलब कोनी। खेलना है मैचतो दायरा क्रिकेट का मायने रखता हैऔर ग़र नाम कमाना है बॉलीवुड मेंतो काम आनी है एक्टिंग। और बाजार बन्द होडॉमेस्टिक हैल्पआई ना हो और भूख से हाल-बेहाल होतो ना क्रिकेट काम आनी हैना एक्टिंग। 

यही तीसरी बात है। जिन्दगी दायरों में बंटी जरूर होती हैमगर बनतीसब के मिलने से ही हैकोई कमकोई ज्यादा। डिपेन्डइस बात पर करती है कि आम तौर परप्लेइंग फील्ड है क्या दायरों का परस्पर कन्ट्रीब्यूशनघटता बढ़ता भी रहता हैऔर कभी-कभार रिशफिलिंग भीअनहोनी कोनी। 

और आखिरीसबसे खास बात। टाइम खूब होऔर करने कोकुछ खास ना हो तोमतलबबेमतलब की बात से भी खूब निकाले जा सकते हैंइन्हें लिखा भी जा सकता हैऔर किस्मत मेहरबान हुई तो पढ़ने वाले दोस्त भीमिल ही जाते हैं। कभी कभी तोलाइक्स भी मिल जातीं हैंतारीफ भीएकदम फ्री ।

कैसी कही ?

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