कहते हैं,
देर तक चलना हो, तो साथ-साथ चलो, जाना, दूर तलक हो, तो अकेले !
संग-साथ और ऊँचाई, हाथों में हाथ डाल कर, रह नहीं पाते। शायद विधि का विधान। शिखरों पर, मजमे नहीं लगा करते। ऊँचाई पाए लोग, बहुधा, अकेले ही पाये जाते हैं।
तो प्रायः चुनना पड़ता है, एक छोड़ोगे, तभी तो दूसरा थामोगे। दोनों को हासिल करने की कोशिश में, दोनों चले भी जाते हैं। याद है, ना ? दो चूहों के पीछे भागती, एक बिल्ली, वाली बात !
चॉयस, आपकी ही, मगर, सोच समझ कर, और फाइनल।
जो रह गया, सो रह गया, नो रिग्रैट्स 👐
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